Bhishma Ashtami 2025: भीष्म अष्टमी पर इस विधि से करें तर्पण, जानिए पूजन विधि और मुहूर्त

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द्वापर युग में लिखे गए महाकाव्य महाभारत की रचना द्वापर युग में की गई थी। इसकी रचना वेद व्यास ने की थी। महाभारत में भीष्म पितामह को मुख्य पात्र माना जाता है। देवव्रत का भीष्म पितामह बनने का सफर एक कठिन प्रतिज्ञा से शुरू हुई थी। यह प्रतिज्ञा उन्होंने अपने पिता शांतनु के कारण से लिखी थी। मां गंगा के पुत्र भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था। भीष्म पितामह ने अपने पिता की खुशी के लिए हस्तिनापुर का राजा बनकर नहीं बल्कि सेवक बनकर सेवा की थी।

महाभारत के युद्ध में कई महाबली महारथियों को अपने प्राण त्यागने पड़े थे। इनमें से एक भीष्म पितामह भी थे। महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी और द्वापर युग में धर्म की नींव रखी गई थी। बता दें कि हर साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को एकदिष्ट श्राद्ध किया जाता है। इस मौके पर भीष्म अष्टमी भी मनाई जाती है। भीष्म पितामह ने देह त्यागने के लिए माघ माह में सूर्य देव के उत्तरायण होने का समय चुना था। तो आइए जानते हैं भीष्म अष्टमी पर शुभ मुहूर्त और पूजन विधि के बारे में…

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तिथि और शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि की शुरूआत 05 फरवरी 2025 की देर रात 02:30 मिनट पर शुरू होगी। वहीं अगले दिन यानी की 06 फरवरी की देर रात 12:35 मिनट पर इस तिथि की समाप्ति होगी। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। ऐसे में उदयातिथि के हिसाब से 05 फरवरी 2025 को भीष्म अष्टमी मनाई जा रही है। वहीं श्राद्ध के लिए सुबह 11:30 मिनट से लेकर दोपहर 01:41 मिनट तक है।
पूजन विधि
इस दिन सुबह जल्दी स्नान कर लें। वहीं यदि संभव हो तो किसी पवित्र नदी या तालाब में स्नान करें। फिर हाथ में जल लेकर तर्पण करें और इस दौरान आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर होना चाहिए। वहीं अगर आप जनेऊ धारण करते हैं तो तर्पण के दौरान दाहिने कंधे पर जनेऊ धारण करें। तर्पण करने के दौरान ॐ भीष्माय स्वधा नमः। पितृपितामहे स्वधा नमः मंत्र का जाप करें। इसके बाद गंगापुत्र भीष्म को तिल के साथ अर्घ्य अर्पित करें और उनका आशीर्वाद लें।
भीष्म अष्टमी का महत्व
भीष्म पितामह एक ऐसा महापुरुष थे, जिनकी महानता का वर्णन महाभारत में खुद भगवान श्रीकृष्ण ने किया है। इस दिन लोग पूजा-पाठ करते हैं और भीष्म पितामह की कथा सुनते हैं। जिससे कि उनको भीष्म पितामह जैसे संस्कारी और पिता-भक्त संतान की प्राप्ति हो सके। हर साल माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को भीष्म अष्टमी की पूजा की जाती है। वहीं इस दिन व्रत करने वाले जातक को अपने सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और साथ ही पितृ दोष से भी छुटकारा मिलता है।
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