Gopashtami 2024: गोपाष्टमी व्रत से घर में आती है सुख-समृद्धि

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आज गोपाष्टमी पर्व है, सनातन धर्म में गोपाष्टमी पर्व का खास महत्व है, यह त्योहार मुख्य तौर से मथुरा, वृंदावन और ब्रज क्षेत्र के कई हिस्सों में मनाया जाता है और इसमें गाय की पूजा होती है तो आइए हम आपको गोपाष्टमी पर्व का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जानें गोपाष्टमी पर्व के बारे में 
दीवाली के बाद गायों की पूजा का विशेष महत्व है, हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा दिया गया है। गौ पूजन करने वालों को कभी दुख का सामना नहीं करना पड़ता है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन गाय की पूजा खास मानी गई है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की अष्टमी को गोपाष्टमी का त्यौहार बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व 9 नवंबर के दिन मनाया जाएगा। गोपाष्टमी का पर्व विशेष रूप से गाय की पूजा, गायों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रदर्शित करने के लिए समर्पित है। इस दिन गाय के साथ श्रीकृष्ण की पूजा करने का भी विशेष महत्व है। पुराणों में 33 करोड़ देवी देवता और 68 करोड़ तीर्थ गौ माता में प्रतिष्ठित बताए गए हैं, इसलिए जो मनुष्य जितेंद्र और प्रसन्नचित होकर नित्य गायों की सेवा करता है, उसको न केवल गौ माता बल्कि सभी देवी देवताओं को आशीर्वाद प्राप्त होता है, व्यक्ति के सभी दुख दूर होते हैं, घर में सुख समृद्धि आती है और उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती है। गौ माता की पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है, साथ ही जीवन में आने वाले सभी दुख दूर होते हैं।
गोपाष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त
गोपाष्टमी पर्व में गौ माता का पूजन किया जाता है और 9 नवंबर को गौ माता की पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 8 बजकर 1 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 22 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा दोपहर को 12 बजकर 5 मिनट से शाम 4 बजकर 9 मिनट का समय भी पूजा के लिए शुभ है।

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गोपाष्टमी का महत्व
गोपाष्टमी पर्व के दिन गौ माता का पूजन किया जाता है और हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय स्थान दिया गया है। गोपाष्टमी के दिन गौ माता का पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती है। पंडितों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी ने गौ चरण की लीली शुरू की थी। इसलिए ब्रज क्षेत्र में इस पर्व का खास महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास होता है और गाय की पूजा करने से नवग्रहों से जुड़े दोष भी दूर होते हैं।
गोपाष्टमी पर गाय की पूजा का महत्व 
गोपाष्टमी के दिन लोग गायों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान दर्शाते हैं। पंडितों के अनुसार गाय में 33 कोटि देवी-देवता का वास होता है। इनकी आराधना से जीवन में नवग्रहों के दोष दूर होते हैं. धन संकट की समस्या खत्म होती है।
गोपाष्टमी पर्व पर ऐसे करें पूजा 
पंडितों के अनुसार गोपाष्टमी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले स्वयं स्नानादि करना चाहिए और भगवान कृष्ण के समक्ष दीप प्रज्वलित करें। गाय-बछड़े को नहलाकर तैयार करें और गाय को घुंघरू आदि पहनाएं। गौ माता के सींग रंगकर उनमें चुनरी बांधे। अब गाय को भोजन कराए, इसके बाद गाय की परिक्रमा करें, गोधूलि बेला में पुनः गाय का पूजन करें और उन्हें गुड़, हरा चारा आदि खिलाएं।
जानिए गोपाष्टमी का धार्मिक महत्व
गोपाष्टमी पर्व के दिन गौ माता का पूजन किया जाता है और हिंदू धर्म में गाय को पूजनीय स्थान दिया गया हैं। गोपाष्टमी के दिन गौ माता का पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि व खुशहाली आती हैं।
गोपाष्टमी पर्व पर करें ये उपाय, मिलेगा लाभ
पंडितों के अनुसार इस दिन प्रातःकाल में गौओं को स्नान कराएं, स्नान के बाद गौ को माला और आभूषण इत्यादि से सजाएं, एक वस्त्र जरूर ओढ़ाए। इसके बाद गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करें, गायों को गोग्रास देकर उनका पूजन करें और उनकी परिक्रमा करें और थोड़ी दूर तक उनके साथ जाए। 
हरा चारा और गुड़ का भोजन कराएं
जो लोग गौ सेवा करते हैं, उनका पूजन करते हैं, उन्हें इस दिन गाय को हरा चारा और गुड़ जरुर खिलाना चाहिए। इससे न केवल गौ माता का आशीर्वाद मिलता है बल्कि कुपित बुध ग्रह भी शांत होते हैं।
गोपाष्टमी पर्व की पौराणिक कथा
एक बार देवराज इंद्र ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए ब्रज में मूसलाधार वर्षा शुरु कर दी, तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को इस संकट से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर सारे ब्रजवासियों इसकी शरण में ले लिया। आठवें दिन इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और कामधेनु ने अपने दूध से भगवान का अभिषेक किया था। तब से गोपाष्टमी के पर्व की शुरुआत हुई। एक अन्य धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने आज के ही दिन से गौ चारण शुरू किया था।
– प्रज्ञा पाण्डेय

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