क्या आंध्र प्रदेश और बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलेगा? क्या होगा इससे फायदा?
18वीं लोकसभा के चुनाव के बाद अब बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए गठबंधन की सरकार बनने जा रही है। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 240 सीटें जीती हैं। लेकिन अपने बूते पूर्ण बहुमत हासिल नहीं कर पाने के कारण उसे यूनाइटेड जनता दल (जेडीयू) और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) की मदद से सरकार बनानी होगी।
आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा के लिए भी चुनाव हुए हैं। चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ने राज्य में 135 सीटें जीती हैं। अब यहां चंद्रबाबू नायडू एक बार फिर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं।
आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग एक दशक से भी अधिक समय से की जा रही है। दिलचस्प बात ये है कि कांग्रेस के घोषणापत्र में आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा किया गया था।
4 जून को नतीजे के दिन कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने इस बारे में एक ट्वीट भी किया था जिसमें उन्होंने कांग्रेस की तरफ़ से ये वादा पूरा करने की बात दोहराई।
अब जब बीजेपी को चंद्रबाबू नायडू और तेलुगू देशम पार्टी की जरूरत है तो उम्मीद है कि चंद्रबाबू राज्य को विशेष दर्जा देने की बड़ी मांग करेंगे।
इसके साथ ही बीजेपी को समर्थन देने का एलान कर चुके नीतीश कुमार के बिहार में भी विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग उठी है। माना जा रहा है कि नीतीश कुमार भी बीजेपी के सामने बिहार के लिए ये मांग रख सकते हैं।
ऐसे में ये सवाल पूछा जा सकता है कि किसी राज्य को दिए जाने वाला स्पेशल स्टेटस आख़िर है क्या और इससे विशेष राज्य का दर्जा पाने वाले स्टेट के लिए क्या बदल जाता है।
- विशेष राज्य का दर्जा
भारत के संविधान ऐसे स्पेशल स्टेटस का कोई प्रावधान नहीं करता है। भारत में साल 1969 में गाडगिल कमेटी की सिफ़ारिशों के तहत विशेष राज्य के दर्जे की संकल्पना अस्तित्व में आई। इसी साल असम, नगालैंड और जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था।
गाडगिल कमेटी के फॉर्मूले के तहत स्पेशल कैटगिरी का स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए संघीय सरकार की सहायता और टैक्स छूट में प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया था। स्पेशल स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए एक्साइज ड्यूटी में भी महत्वपूर्ण छूट दिए जाने का प्रावधान किया गया था ताकि वहां बड़ी संख्या में कंपनियां मैनुफैक्चरिंग फैसिलिटीज़ स्थापित कर सकें।
स्पेशल स्टेटस सामाजिक और आर्थिक, भौगोलिक कठिनाइयों वाले राज्यों को विकास में मदद के लिए दिया जाता है। इसके लिए अलग-अलग मापदंड निर्धारित किए गए हैं।
विशेष श्रेणी का दर्जा के लिए मानदंड
पहाड़ी और दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियों वाले क्षेत्र
कम जनसंख्या घनत्व और/या पर्याप्त जनजातीय आबादी
अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से लगने वाला एक रणनीतिक स्थान
आर्थिक एवं ढांचागत दृष्टिकोण से पिछड़ा हुआ
राज्य की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं होना
- किन राज्यों को स्पेशल स्टेटस दिया गया है?
वर्तमान में भारत में 11 राज्यों को इस तरह की विशेष श्रेणी का दर्जा दिया गया है। इनमें असम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और तेलंगाना शामिल हैं। तेलंगाना राज्य के गठन के बाद राज्य को आर्थिक रूप से मदद करने के लिए उसे यह दर्जा दिया गया था।
- स्पेशल स्टेटस मिलने से क्या फायदा होता है?
अन्य राज्यों की तुलना में विशेष दर्जा प्राप्त राज्यों को केंद्र से मिलने वाली सहायता में कई लाभ मिलते हैं। पहले इन राज्यों को गाडगिल-मुखर्जी फॉर्मूले के तहत केंद्र से लगभग 30 फ़ीसदी वित्तीय सहायता दी जाती थी। लेकिन 14वें और 15वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों और योजना आयोग के विघटन के बाद विशेष श्रेणी के राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता को अलग तरीके से शामिल किया गया।
वित्त आयोग की सिफ़ारिशों के मुताबिक़, राज्यों को दी जाने वाली यह राशि 32 फीसदी से बढ़ाकर 41 फीसदी कर दी गई है। केंद्र प्रायोजित योजनाओं के मामले में विशेष दर्जा रखने वाले राज्यों को 90 फ़ीसदी धनराशि मिलती है जबकि अन्य राज्यों के मामले में यह अनुपात 60 से 70 फीसदी है।
इसके अलावा विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त राज्यों को सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क, आयकर और कॉर्पोरेट कर में रियायतें मिलती हैं। इन राज्यों को देश के सकल बजट का 30% हिस्सा मिलता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यदि ऐसे राज्यों को मिलने वाली धनराशि बच जाती है, तो उसका उपयोग अगले वित्तीय वर्ष में किया जा सकता है, जिससे राज्य की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।