Achala saptami 2024: अचला सप्तमी पर दान से होती है आरोग्य की प्राप्ति

0
आज अचला सप्तमी है, हिन्दू धर्म में इसका खास महत्व है। इस दिन व्रत से साधक को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको अचला सप्तमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 
जानें अचला सप्तमी के बारे में 
माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अचला सप्तमी के नाम जाना जाता है। कहीं-कहीं इसे रथ सप्तमी व्रत, सूर्य जयंती भी कहते हैं। इस दिन वस्त्रों का दान करने का बहुत पुण्य प्राप्त होता है। पंडितों का मानना है कि इस दिन स्नान और दान करने से धन धान्य और आरोग्य की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन ग्रहों के राजा सूर्यदेव का जन्म हुआ था। शास्त्रों के अनुसार इस दिन पूजा अर्चना और व्रत करने से सूर्यदेव की कृपा से रोग दूर होता है और धन-धान्य में वृद्धि होती है। इसको पूरे साल की सप्तमियों में अच्छा माना जाता है। अचला सप्तमी अगर रविवार को हो तो उसे “भानु सप्तमी” कहते हैं । अचला सप्तमी के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी / तीर्थ में पूर्व दिशा की ओर मुंह करके स्नान करके उगते हुए सूर्य को सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, गुड़, लाल चन्दन आदि को जल में मिलाकर “ॐ घर्णी सूर्याय नम:” मन्त्र का जाप करते हुए अर्घ्य देने और तत्पश्चात आदित्य हर्दय स्त्रोत का पाठ करने से पूरे वर्ष की सूर्य भगवान की पूजा का फल मिलता है । अगर नदी में स्नान ना कर पाए तो पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए ।

इसे भी पढ़ें: Bhishma Ashtami 2024: जानिए क्यों मनाई जाती है भीष्म अष्टमी, व्रत और दान करने से मिलता है शुभ फल

अचला सप्तमी का शुभ मुहूर्त 
पंचांग के अनुसार इस साल माघ माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि 16 फरवरी 2024 शुक्रवार को सुबह 8 बजकर 54 मिनट पर होगा। 
अचला सप्तमी पर गंगा स्नान का मुहूर्त
धर्म ग्रंथों में गंगा नदी का पवित्र माना गया है और कहते हैं कि गंगा में स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पाप धुल जाते हैं। रथ सप्तमी के दिन गंगा में स्नान का विशेष महत्व माना गया है। पंचांग के अनुसार16 फरवरी को अचला सप्तमी के दिन गंगा स्नान का शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 17 मिनट से लेकर सुबह 6 बजकर 59 मिनट तक रहेगा। गंगा में स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य अवश्य दें और इस दिन सूर्योदय का समय सुबह 6 बजकर 59 मिनट है। 
अचला सप्तमी के दिन ये न करें 
आज के दिन तेल और नमक का त्याग करना चाहिए अर्थात उनका सेवन नहीं करना चाहिए। भविष्य पुराण के अनुसार आज के दिन भगवान सूर्य का ब्रत रखने से सुख, सौभाग्य, रूप, यश और उत्तम सन्तान की प्राप्ति होती है।
अचला सप्तमी व्रत को इन्हें करने से होगा लाभ 
अचला सप्तमी को अपने गुरु को अचला (गले में डालने वाला वस्त्र) तिल, गुड़, स्वर्ण, गाय और दक्षिणा देने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है, जीवन में किसी भी प्रकार का संकट कोई भी आभाव नहीं रहता है। हिन्दू धर्म शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है । इनकी उपासना से मनुष्य निरोगी रहता है अथवा सभी रोगों से अवश्य ही मुक्ति मिलती है। वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की रश्मियों में चमत्कारी गुण बताये गये है जिसके प्रभाव से रोग समाप्त होते हैं। सूर्य चिकित्सा पद्धति सूर्य की किरणों पर ही आधारित है।
अचला सप्तमी से जुड़ी पौराणिक कथाएं 
अचला सप्तमी के संबंध में भविष्य पुराण में मौजूद कथा के अनुसार, एक वेश्या ने कभी कोई दान नहीं किया था। जब वह बूढ़ी हो गई तो उसने महार्षि वशिष्ठ से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा । इसके उत्तर में महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि उसे माघ मास की सप्तमी को सूर्य भगवान की आराधना और दान करना होगा। ऐसे करने से पुण्य प्राप्त होता है। महर्षि वशिष्ठ के बताए उपाय पर उस वैश्या ने वैसा ही किया, जिससे उसे मृत्यु के बाद इंद्र की अप्सराओं में शामिल होने का गौरव मिला। हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक शक्ति पर काफी अधिक घमंड हो गया था । एक बार की बात है जब ऋषि दुर्वासा कई दिनों तक तप करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण से मिलने आए थे तो उनका शरीर का काफी दुर्बल हो गया था। शाम्ब ने ऋर्षि दुर्वासा के दुर्बल शरीर का अपमान कर दिया, जिससे नाराज होकर ऋषि दुर्वासा ने गुस्से में उन्हें कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया। पुत्र की स्थिति को देखकर श्रीकृष्ण ने शाम्ब को सूर्य की उपासना करने को कहा, जिसके बाद सूर्य की उपासना करने के बाद उन्हें कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई ।
अचला सप्तमी पर ऐसे करें पूजा
अचला सप्तमी के दिन सुबह प्रात: काल उठकर स्नान किया जाता है। इसके पश्चात साफ-स्वच्छ कपड़े पहने जाते हैं। सुबह ही व्रत का प्रण ले लिया जाता है। अब पूजा करने के लिए तांबे के दीपक में तिल का तेल भरा जाता है और सूर्य देव का ध्यान करने के बाद इस दिये को जल में प्रवाहित कर दिया जाता है। भगवान सूर्य की पूजा की जाती है और उसमें फूल, धूप और दीप आदि सम्मिलित किए जाते हैं। सूर्य देव की आराधना करते हुए ‘सपुत्रपशुभृत्याय मेर्कोयं प्रीयताम्’ मंत्र का उच्चारण करते हैं। इस पूजा में मिट्टी की मटकी में गुड़ और घी सहित तिल का चूर्ण रखा जाता है। इस बर्तन को लाल रंग के कपड़े से ढककर पूजा में शामिल करते हैं और पूजा के पश्चात इसे दान में दे दिया जाता है। अचला सप्तमी के दिन वस्त्र और तिल का दान शुभ मना जाता है। आखिर में जरूरतमंदों को भोजन करवाने के बाद व्रत का समापन होता है। इस पूजा में भगवान शिव और माता पार्वती का पूजन भी किया जाता है। पंडितों का मानना है कि इस व्रत को करने से भगवान सूर्य अपनी कृपा बरसाते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। 
अचला सप्तमी व्रत से लाभ
इस दिन व्रत रखने वाले जातक को सूर्यदेव की पूजा के पश्चात अपने घर पर भोजन बनवाकर ब्रह्मणों को भोजन करकर उन्हें अपनी श्रद्धा एवं सामर्थ्य के अनुसार दान दे कर विदा करें। पंडितों का मानना है कि इस व्रत को करने से सूर्य देव की प्रसन्न होते है। व्यक्ति रोग से मुक्त हो जाता है उसे जीवन में सर्वत्र सफलता और मान सम्मान की प्राप्ति होती है ।
अचला सप्तमी का महत्व 
सनातन धर्म में सूर्य सप्तमी का विशेष महत्व है। इस दिन भक्त सुबह जल्दी उठ कर पवित्र नदियों में स्नान करके पुरे दिन भगवान सूर्य देव की आराधना करते है। इस दिन चावल, चंदन, फल और दूर्वा का दान करना बहुत श्रेष्ठ माना गया है। इस दिन सूर्य देव को अर्घ अवश्य ही  देना चाहिए। जो जातक के लिए इस दिन पवित्र नदियों  में स्नान करना संभव नहीं हो पता उनको स्नान करते समय गंगा जल को पानी में डाल देना चाहिए। इस दिन ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन कराना चाहिए।
क्यों मनाई जाती है अचला सप्तमी
सूर्य देव का आशीर्वाद पाना रोग मुक्ति के वरदान से कम नहीं है। जिन भक्तों पर सूर्य देवता की कृपा हो जाती है, उनके चर्म रोग जैसे गंभीर रोग भी दूर भाग जाते है। आरोग्य जीवन की चाह से भक्त इस सप्तमी के दिन को पूरी आस्था और श्रद्धा से मनाते है। 
– प्रज्ञा पाण्डेय

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed