14 अगस्त विशेष : आज ही के दिन हुआ था हिंदुस्तान का विभाजन, जानें मौतें और विस्थापन का दर्द
विभाजन या बंटवारा किसी देश, भूमि या सीमा का नहीं होता। विभाजन तो लोगों की जिंदगी, भावनाओं का हो जाता है जो हमेशा के लिए उनको इतने गहरे जख्म दे जाता है कि वह उनकी खुद की और आने वाली नस्लों की जिंदगी को झिंझोड़ कर रख देता है। 1857 से 1947 तक 90 साल के संग्राम, आंदोलन और बलिदान के बाद भारतीयों ने आजादी की जगह देखी विभाजन की त्रासदी। बंटवारा किस आधार पर हुआ और क्यों हुआ? क्यों नहीं इसके लिए जनमत कराया गया? ऐसे कई सवाल है जो आज भी मन में उठते हैं।
बंटवारे की सबसे ज्यादा त्रासदी सिंधी, पंजाबी, कश्मीरी और बंगालियों ने झेली है। विभाजन का यह काला अध्याय आज भी इतिहास के चेहरे पर विस्थापित हुए, भगाए गए, मारे गए, भटक कर मौत को गले लगाने वाली मनुष्यता के खूने के छींटों से भरा है।
विभाजन ने बंगाल, पंजाबी और सिंधियों की जिंदगी कर दी तबाह
विभाजन की इस घोषणा के बाद पूरे देश में अफरातफरी का माहौल था।
एक तरफ आजादी मिलने की खुशी थी तो दूसरी तरफ बंटवारे का दर्द।
सभी यह जानने में लगे थे कि कौन सा क्षेत्र भारत में और कौन सा क्षेत्र पाकिस्तान में रहेगा।
इसी के चलते हिन्दू, सिख और मुस्लिम सभी बॉर्डर क्रॉस करने में लगे थे।
अपनी भूमि और मकान सभी कुछ छोड़ने का दर्द सीने में लिए वे एक अनिश्चित भविष्य की ओर कदम बढ़ा रहे थे।
दो देश के बंटवारे में दोनों ओर के अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 1.4 करोड़ लोग विस्थापित हुए थे।
1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के एकदम बाद 72,26,000 मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गए और 72,49,000 हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आए।
10 किलोमीटर लंबी लाइन में लाखों लोग देशों की सीमा को पार हुए उस पार गए या इस पार आए।
महज 60 दिनों में एक स्थान पर सालों से रहने वाले को अपना घर बार, जमीन, दुकानें, जायदाद, संपत्ति, खेती किसानी छोडकर हिंदुस्तान से पाकिस्तान और पाकिस्तान से हिंदुस्तान आना पड़ा। हालांकि विस्थापन का यह दौर आगे भी चलता रहा, जिनके आंकड़े उपरोक्त से कई गुना हो सकते हैं।
विभाजन की घोषणा होने के बाद अनुमानित रूप में 10 लाख लोग मारे गए थे हालांकि एक अन्य अनुमान के मुताबिक 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे।
हिंदुस्तान विभाजन के दौरान बंगाल, सिंध, हैदराबाद, कश्मीर और पंजाब में दंगे भड़क उठे।
मुस्लिम नेताओं द्वारा प्रायोजित इन दंगों में हिन्दू, ईसाई, सिख, बौद्ध, अहमदिया और शिया मुसलमानों की जिंदगी तबाह हो गई।
हिंसा, भारी उपद्रव और अव्यवस्था के बीच पाकिस्तान से सिख और हिन्दू भारत की ओर भागे।
बहुतों को ट्रेन मिली और बहुतों को बस मिली। कहते हैं कि पाकिस्तान की ओर से जो ट्रेन आई उसमें लाशें भरी हुई थी। पुरुष और बच्चों की संख्या ज्यादा थी।
विभाजन के बाद के महीनों में दोनों नए देशों के बीच भारी संख्या में जन-पलायन हुआ।
पाकिस्तान में बहुत से हिन्दुओं और सिखों को बलात् बेदखल किया गया।
हिन्दू और सिखों की भूमि और घर पर कब्जा किया और उन्हें देश छोड़ने पर मजबूर किया गया।
पंजाबी और बंगालियों ने आधा तो सिंधियों ने तो अपना पूरा प्रांत ही खो दिया।
देश की आजादी के 70 साल बाद भी सिन्धी हिन्दू समाज विस्थापितों की तरह जीवन यापन कर रहा है।
अनुमानित रूप में 75 हजार से 1 लाख महिलाओं का बलात्कार या हत्या के लिए अपहरण हुआ।
जबरन शादी, गुलामी और जख्म ये सब बंटवारे में औरतों के हिस्से में आया।
कहा जाए जो विभाजन तो हिन्दु और सिख महिलाओं की छाती पर हुआ था।
कई महिलाओं, कम उम्र की बालिकाओं को पाकिस्तानी सैनिकों ने बंधक बना रखा था।
विभाजन और कश्मीर
विभाजन की त्रासदी कश्मीरी पंडितों को भी भयंकर रूप से झेलना पड़ी थी।
मोहम्मद अली जिन्ना के इशारे पर कश्मीर में कबाइलियों ने आक्रमण कर दिया।
कबाइलियों ने कश्मीर के आधे से ज्यादा हिस्से पर कब्जा कर लिया था और लूटपाट शुरू कर दी थी।
बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का कत्लेआम किया गया जिसके चलते लाखों कश्मीरी पंडितों को कश्मीर छोड़कर जम्मू की ओर पलायन करना पड़ा।
पंजाब, सिंध, कश्मीर और पूर्वी बंगाल में हिंदुओं और सिखों की बस्ती पर मुसलमानों ने कब्जा करके पुरुषों को लाइन से खड़ा करके मार दिया गया और उनकी महिला एवं संपत्ति को हड़प लिया। कई महिलाएं अपनी जान बचाने में सफल ही और विभाजित भारत में आकर शरणार्थी शिविर में जीवन बिताया और बाद में उन्होंने अपनी आपबीती बताई। ऐसी हजारों महिलाएं और बच्चे हैं जिन्होंने बंटवारे की त्रासदी को झेला।
आंध्रप्रदेश और भोपाल में हिन्दुओं का कत्लेआम
विभाजन के दौरान आंध्रा के हैदराबाद जो दंगे हुए उन्हें निजाम की सेना ने अंजाम दिया था, जिसमें हजारों हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया था।
हैदराबाद की रियासत की जनसंख्या का 80 प्रतिशत भाग हिन्दू था, लेकिन हैदराबाद के कट्टरपंथी मुस्लिम कासिम रिजव ने निजाम पर दबाव बनाया और उन्हें भारतीय संघ में नहीं मिलने के लिए राजी किया।
केएम मुंशी ने कासिम रिजवी के बारे में लिखा कि उसने राज्य की मुस्लिम जनता को भड़काकर दंगे करवाए थे।
इसी तरह का किस्सा जूनागढ़ और भोपाल रियासत में भी हुआ।
जनसंख्या बदलने की रणनीति
1941 की जनगणना के मुताबिक तब हिंदुओँ की संख्या 29.4 करोड़, मुस्लिम 4.3 करोड़ और बाकी लोग दूसरे धर्मों के थे। परंतु फिर भी भारत के एक बहुत बड़े भू भाग को धर्म के नाम पर अलग कर दिया गया जिसमें 29 करोड़ हिन्दुओं की राय नहीं ली गई। यही सबसे बड़ी पहली त्रासदी थी। कुछ मुट्ठीभर लोगों ने टेबल पर बैठकर बंटवारा कर दिया।
वर्तमान में धर्म के नाम पर अलग हुए पाकिस्तान की 20 करोड़ की आबादी में अब मात्र 1.6 फीसदी हिन्दू ही बचे हैं जबकि आजादी के समय कभी 22 प्रतिशत होते थे। पाकिस्तान की जनगणना (1951) के मुताबिक पाकिस्तान की कुल आबादी में 22 फीसदी हिन्दू थे, जो 1998 की जनगणना में घटकर 1.6 फीसदी रह गए हैं। 1965 से अब तक लाखों पाकिस्तानी हिन्दुओं ने भारत की तरफ पलायन किया है। देखा जाए तो जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं का प्रतिशत 29.63 से घटकर 28.44 रह गया है।