Gayatri Jayanti: गायत्री जयंती पर इस तरह करेंगे माता का पूजन तो एकसाथ मिलेगी माँ लक्ष्मी-सरस्वती-काली की कृपा

0
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को गायत्री जयंती का पर्व मनाया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इस दिन माता गायत्री का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि जो भी मनुष्य माँ गायत्री की सच्चे मन से उपासना करता है उसे माता लक्ष्मी, माता सरस्वती और माता काली का एक साथ आशीर्वाद मिलता है। विशेषकर छात्रों के लिए गायत्री जयंती का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन गायत्री माता की पूजा और उनके मंत्र जाप में कुछ सावधानियां भी बरते जाने की जरूरत है।
देखा जाये तो गायत्री सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मंत्र है। जो कार्य संसार में किसी अन्य मंत्र से हो सकता है, गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी का अनिष्ट नहीं होता, इससे सरल, श्रम साध्य और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है। समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर में कही गयी है। अर्थववेद में गायत्री को आयु, विद्या, संतान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। विश्वामित्र ऋषि जी ने कहा है, ”गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। संपूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान भी नहीं हैं।”
गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में अनेक ज्ञान−विज्ञान छिपे हुए हैं। गायत्री साधना द्वारा आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है और अनेक ऋद्धि−सिद्धियां परिलक्षित होने लगती हैं। गायत्री उपासना से तुरंत आत्मबल बढ़ता है। गायत्री साधना एक बहुमूल्य दिव्य संपत्ति है। इस संपत्ति को इकट्ठी करके साधक उसके बदले में सांसारिक सुख एवं आत्मिक आनन्द भली प्रकार प्राप्त कर सकता है।

इसे भी पढ़ें: Gayatri Jayanti 2023: आज मनाया जा रहा गायत्री जयंती का पर्व, मां की उपासना से पूरा होगा हर कार्य

गायत्री के 24 अक्षरों का गुंथन ऐसा विचित्र एवं रहस्यमय है कि उनके उच्चारण मात्र से जिव्हा, कण्ठ, तालु एवं मूर्धा में अवस्थित नाड़ी तंतुओं का एक अद्भुत क्रम में संचालन होता है। इस प्रकार गायत्री के जप से अनायास ही एक महत्वपूर्ण योग साधना होने लगती है और उन गुप्त शक्ति केंद्रों के जागरण से आश्चर्यजनक लाभ मिलने लगता है।
गायत्री भगवान का नारी रूप है। भगवान की माता के रूप में उपासना करने से दर्पण के प्रतिबिम्ब एवं कुएं की आवाज की तरह वे भी हमारे लिए उसी प्रकार प्रत्युत्तर देते हैं। गायत्री को भूलोक की कामधेनु कहा गया है। गायत्री को सुधा कहा गया है क्योंकि जन्म−मृत्यु के चक्र से छुड़ाकर सच्चा अमृत प्रदान करने की शक्ति से वह परिपूर्ण है। गायत्री को पारसमणि कहा गया है क्योंकि उसके स्पर्श से लोहे के समान कलुषित अंतःकरणों का शुद्ध स्वर्ण जैसा महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाता है। गायत्री को कल्पवृक्ष कहा गया है क्योंकि इसकी छाया में बैठकर मनुष्य उन सब कामनाओं को पूर्ण कर सकता है जो उसके लिए उचित एवं आवश्यक है।
श्रद्धापूर्वक गायत्री माता का आंचल पकड़ने का परिणाम सदा कल्याणपरक होता है। गायत्री को ब्रह्मास्त्र कहा गया है क्योंकि कभी किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती। इसका प्रयोग कभी भी व्यर्थ नहीं होता है।
गायत्री साधना के नियम बहुत सरल हैं। स्नान आदि से शुद्ध होकर प्रातःकाल पूर्व की ओर, सायंकाल पश्चिम की ओर मुंह करके, आसन बिछाकर जप के लिए बैठना चाहिए। पास में जल का पात्र तथा धूपबत्ती जलाकर रख लेनी चाहिए। जल और अग्नि को साक्षी रूप में समीप रखकर जप करना उत्तम है। आरम्भ में गायत्री के चित्र का पूजन अभिवादन या ध्यान करना चाहिए, पीछे जप इस प्रकार आरम्भ करना चाहिए कि कण्ठ से ध्वनि होती रहे, होंठ हिलते रहें, पर पास बैठा हुआ भी दूसरा मनुष्य उसे स्पष्ट रूप से न सुन समझ सके। तर्जनी उंगली से माला का स्पर्श करना चाहिए। एक माला पूरी होने के बाद उसे उलट देना चाहिए। कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए। जप पूरा होने पर पास में रखे हुए जल को सूर्य के सामने अर्घ्य चढ़ा देना चाहिए। रविवार गायत्री का दिन है, उस दिन उपवास या हवन हो सके तो उत्तम है।
-शुभा दुबे

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed