Gudi Padwa 2023: आज मनाया जा रहा है महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पर्व गुड़ी पड़वा, जानिए इससे जुड़ी मान्यताएं
हिंदू धर्म में कई तरह के व्रत और त्योहार मनाए जाते हैं। इन्हीं पर्वों में एक है गुड़ी पड़वा। पंचांग के मुताबिक चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया जाता है। इस साल 22 मार्च को चैत्र नवरात्रि के साथ ही गुड़ी पड़वा का भी पर्व पड़ रहा है। गुड़ी पड़वा का मतलब होता है कि विजय की पताका। गुड़ी पड़वा का पर्व महाराष्ट्र का मुख्य त्योहार है। इस त्योहार को मनाने के पीछे कई मान्यताएं और कहानियां प्रचलित हैं।
मान्यता के अनुसार, इस दिन ब्रह्मा जी ने इस सृष्टि की रचना की थी। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि गुड़ी पड़वा के दिन से ही सतयुग का आरंभ हुआ था। इसदिन विशेष पूजा अर्चना की जाती है। पौरौणिक मान्यता के मुताबिक गुड़ी पड़वा के दिन भगवान श्रीराम ने बालि का वध किया था और बालि के आतंक से दक्षिण भारत के लोगों को मुक्त कराया था। आइए जानते हैं गुड़ी पड़वा का क्या महत्व है।
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शुभ मुहूर्त
22 मार्च को चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि की शुरूआत 21 मार्च की रात 10:52 मिनट से हो रही है। वहीं अगले दिन 22 मार्च को रात 08:20 मिनट पर इसका समापन हो जाएगा। वहीं उदयातिथि के मुताबिक नवरात्रि की शुरूआत भी आज यानि की 22 मार्च से हुई है।
ऐसे बनती है गुड़ी
गुड़ी को बनाने के लिए बांस के ऊपर उल्टा तांबे, चांदी या फिर पीतल का कलश लगाया जाता है। फिर इसको सुंदर साड़ी पहनाई जाती है। इस गुड़ी को आम और नीम के पत्तों और फूलों से सजाया जाता है। गुड़ी को घर में सबसे ऊंचे स्थान पर लगाया जाता है। जिससे कि यह दूर से ही नजर आए।
महत्व
गुड़ी पड़वा को हिंदू नववर्ष की शुरूआत माना जाता है। भारत के अलग-अलग राज्यों में इस पर्व को विभिन्न नाम से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में उगादी, कर्नाटक में युगादि नाम से जाना जाता है। मणिपुर में इस पर्व को सजिबु नोंगमा पानबा और कश्मीर में नवरेह कहा जाता है। इसके अलावा गोवा और केरल में कोंकणी समुदाय के लोग इसे संवत्सर पड़वो पर्व के रूप में मनाते हैं। इस दिन सिंधि समुदाय के लोग चेती चंड का पर्व मनाते हैं।
महाराष्ट्र का मुख्य पर्व
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा को खास तौर पर मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं घर में सुंदर गुड़ी लगाने के साथ ही उसका पूजन करती हैं। मान्यता है कि घर में गुड़ी को लगाने से सकारात्मकता का वास होता है और घर में सुख-समृद्धि आती है। मान्यता के मुताबिक वीर मराठा छत्रपति शिवाजी ने सबसे पहले इस पर्व की शुरूआत की थी। शिवाजी जी ने युद्ध जीतने के बाद सबसे पहले गुड़ी पड़वा का पर्व मनाया था। जिसके बाद से मराठी लोगों द्वारा इस परंपरा का पालन किया जाता है। इस दिन को लोग विजय दिवस के रूप में सेलिब्रेट करते हैं।