मकर संक्रांति पर ही भगवान सूर्य को अपने पुत्र शनि से मिलने का अवसर मिल पाता है

0
मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने लगता है जो ठंड के घटने का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जो मकर राशि के शासक थे। पिता और पुत्र आम तौर पर अच्छी तरह नहीं मिल पाते इसलिए भगवान सूर्य महीने के इस दिन को अपने पुत्र से मिलने का एक मौका बनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है। वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता था। मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए गए द्रव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं।
सर्दी के मौसम के समापन और फसलों की कटाई की शुरुआत का प्रतीक समझे जाने वाले मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर लाखों लोग देश भर में पवित्र नदियों में स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं। देश के विभिन्न भागों में तो लोग इस दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद रात के अंधेरे में ही नदियों में स्नान शुरू कर देते हैं। प्रयागराज के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट, हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर और महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में श्रद्धालु इस अवसर पर लाखों की संख्या में एकत्रित होते हैं। इस पर्व पर प्रयागराज में लगने वाला माघ मेला और कोलकाता में गंगासागर के तट पर लगने वाला मेला काफी प्रसिद्ध है। अयोध्या में भी इस पर्व की खूब धूम रहती है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है।

इसे भी पढ़ें: मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान देना विशेष रूप से फलदायी होता है

मकर संक्रांति पर्व देश के विभिन्न भागों में अलग अलग नामों से भी मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल ‘संक्रान्ति’ कहा जाता है। मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व हिमाचल, हरियाणा तथा पंजाब में यह त्योहार लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सायंकाल अंधेरा होते ही होली के समान आग जलाकर तिल, गुड़, चावल तथा भुने हुए मक्का से अग्नि पूजन करके आहुति डाली जाती है। इस सामग्री को तिलचौली कहते हैं। इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की गजक, रेवड़ियां आदि आपस में बांटकर खुशियां मनाते हैं।
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना बेहद पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष रूप से फलदायी माना गया है। देश के विभिन्न मंदिरों को इस दिन विशेष रूप से सजाया जाता है और इसी दिन से शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी खत्म हो जाता है। 
इस पर्व पर उत्तर प्रदेश में खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है वहीं महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि वस्तुएं अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन कूड़ा करकट जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाकर खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। असम में मकर संक्रांति को माघ−बिहू अथवा भोगाली−बिहू के नाम से मनाया जाता है तो राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
-शुभा दुबे

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed