कोरोना ने वक्त से पहले ही बूढ़ा कर दिया किशोरों का दिमाग, रिसर्च में हुआ खुलासा
कोरोना संक्रमण ने कई तरह के दंश दुनिया को दिया है। पोस्ट कोविड लोगों को कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। लेकिन अब जो रिपोर्ट सामने आई है, वो चौंकाने वाली है। इस अध्ययन में बच्चों को लेकर बडी बात कही गई है। दरअसल, इस रिसर्च में कहा गया है कि कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन में रहे किशोरों के दिमाग में बहुत बदलाव हुआ है।
इस बदलाव के चलते उनका दिमाग समय से पहले बूढ़ा हो गया है। कहा गया है कि इसके असर से बच्चों में आलसीपन, अस्वस्थता, स्क्रीन की लत, मिसबिहेवियर समेत कई तरह की मानसिक समस्याओं को जन्म दे दिया है। यानी जो परिवर्तन समय के साथ इंसानी दिमाग में होता है, वह बदलाव किशोर उम्र में ही होने लगा। यानी कोरोना ने बच्चों का दिमाग बूढ़ा कर दिया है।
रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना ने बच्चों में आलसीपन, अस्वस्थता, स्क्रीन का आदी, मिसबिहेवियर सहित कई मानसिक समस्याओं को पैदा किया है, जिससे बच्चों की सीखने की क्षमता भी प्रभावित हुई है। बच्चों में न सिर्फ शारीरिक परिवर्तन हुए हैं, बल्कि व्यावहारिक रूप से भी उसे बदल दिया है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि महामारी से संबंधित तनावों ने किशोरों के दिमाग को शारीरिक रूप से बदल दिया है, जिससे उनके मस्तिष्क की संरचना महामारी से पहले अपने साथियों के दिमाग की तुलना में कई साल पुरानी दिखाई देती है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक ईयान गॉटलिब ने कहा कि दिमाग की संरचना में समय के साथ बदलाव स्वभाविक है। किशोरावस्था की शुरुआत और प्यूबर्टी होने के समय बच्चे का शरीर तेजी से विकसित होता है। इस दौरान दिमाग का हिप्पोकैंपस और एमिगडेला का भी विकास तेजी से होता है। दिमाग के ये हिस्से याददाश्त और भावनाओं को कंट्रोल करते हैं।
इसी समय दिमाग के टिशू का कुछ हिस्सा पतला हो जाता है। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में कोरोना से पहले और कोरोना के दौरान 163 बच्चों के एमआर आई स्कैन के डाटा का विश्लेषण किया। इससे पता चला कि लॉकडाउन के दौरान टीनेजर्स के मस्तिष्क का विकास बहुत तेज गति से हुआ, जिसके कारण दिमाग बूढ़ा होने लगा। यह अध्ययन बायलॉजिकल साइकेटरी ग्लोबल ओपन साइंस जर्नल में प्रकाशित हुआ।
रिपोर्ट में बताया गया है कि शोधकर्ताओं ने कहा कि बच्चों के दिमाग में अब तक इस तरह का परिवर्तन तब देखा गया है जब बच्चे किसी प्रतिकुल क्रोनिक बीमारियों से जूझ रहे हों। इसमें बच्चे उपेक्षा, हिंसा, पारिवारिक शिथिलता सहित कई कारणों से परेशान हो जाते हैं। उस स्थिति में किशोर का दिमाग समय से पहले बूढ़ा होने लगता है। गोटलिब ने कहा कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि किशोरों के मस्तिष्क की संरचना में जो बदलाव देखे गए हैं, वह स्थायी है या नहीं।
इस तरह के मनोवैज्ञानिक बदलाव से इस उम्र के किशोरों की पूरी पीढ़ी को बाद में परेशानी झेलनी पड़ी। उन्होंने बताया कि आमतौर पर 70-80 सालों के लोगों के दिमाग में परिवतर्न के कारण बोद्धिक क्षमता और याददाश्त की समस्या होती है, लेकिन अगर 16-17 साल में दिमाग में इस तरह का बदलाव हो जाए तो उसके क्या परिणाम होंगे, यह कहना मुश्किल है।