अनसुनी कहानी जब 1942 में बच्चे को पीठ पर बांध जहाज से कूद गई थी ‘लक्ष्मीबाई’
- भारतीय ‘टाइटैनिक’ की रोंगटे खड़े करने वाली कहानी
ब्रिटिश जहाज ‘टाइटैनिक’ के डूबने की कहानी तो ज्यादातर लोगों को पता है, लेकिन क्या आप भारतीय ‘टाइटैनिक’ एसएस तिलावा (SS Tilawa) के बारे में जानते हैं, जो जापानी पनडुब्बी के हमले के बाद समुद्र में समा गया था? एसएस तिलावा से जुड़ी यूं तो कई कहानियां हो सकती हैं, लेकिन हम उनमें से एक कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल, आज यानी 23 नवंबर, 2022 को एसएस तिलावा हादसे को 80 साल पूरे हो गए हैं। उस समय जहाज 678 लोग सवार थे। इनमें से 280 लोगों ने जहाज के साथ ही जल समाधि ले ली थी।
जहाज 20 नवंबर, 1942 को मुंबई से दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना हुआ था। अपनों से मिलने के सपने आंखों में लिए सभी लोग बिना किसी तनाव के यात्रा कर रहे थे, लेकिन जहाज की रवानगी के चौथे दिन यानी 23 नवंबर को अचानक एक के बाद एक हुए 2 धमाकों से जहाज क्षतिग्रस्त हो गया। दरअसल, जापानी पनडुब्बी आई-29 ने इस जहाज पर हमला कर दिया था। वह द्वितीय विश्वयुद्ध का दौर था।
- 1942 की लक्ष्मीबाई
जहाज पर अफरा-तफरी मच गई थी। हर कोई कोई जान बचाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा था। इन्हीं में से एक थीं वसंत बेन जानी। वे भी अपने पति से मिलने के लिए दक्षिण अफ्रीका जा रही थीं। उनकी गोद में 3 साल का बेटा अरविन्द था। उन्होंने तत्काल निर्णय लेते हुए बच्चे को साड़ी से पीठ पर बांधा और वे जहाज से हिंद महासागर में छलांग लगा दी। सौभाग्य से 27 नवंबर को वे बेटे के साथ दक्षिण अफ्रीका पहुंच गईं। उनका संघर्ष यहीं खत्म नहीं हुआ। धमाका इतना तेज था कि एक महीने तक उन्हें सुनाई भी नहीं दिया।
एसएस तिलावा हादसे के 80 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मुंबई में आयोजित एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम में भाग लेने आए वसंत बेन के बेटे अरविन्द भाई जानी (जो हादसे के समय 3 साल के थे) ने वेबदुनिया से बातचीत में बताया कि हम दक्षिण अफ्रीका तो पहुंच गए, लेकिन हमें पिता कहां रहते हैं इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी क्योंकि हादसे में पूरा सामान भी नष्ट हो गया था।
फिर मां ने मेरी दादी को गुजरात फोन लगाया और हम कहां रुके हैं इस बारे में बताया। दादी ने मेरे पिता को पत्र लिखकर हमारे बारे में पिता को जानकारी दी। उस समय पत्र पहुंचने में करीब 1 माह का समय लगता था। पिता को खबर मिलने के बाद वे हमसे आकर मिले।
अरविन्द भाई ने बताया कि चूंकि मेरी मां ने पहले ही पिता को पत्र लिखकर बता दिया था कि हम उनसे मिलने आ रहे हैं। ऐसे में जब पिता को हादसे के बारे में जानकारी मिली तो वे डिप्रेशन में चले गए थे। हालांकि दादी की चिट्ठी मिलने के बाद वे संभल गए थे। इसके बाद हम सभी गुजरात पहुंचे और दादी एवं मेरे दूसरे भाई-बहनों से मिले।
- तेज ने इस हादसे में खोए मां एवं तीन भाई
अरविन्द भाई ने एक और कहानी साझा करते हुए बताया कि हमारे साथ 9 साल की तेजप्रकाश कौर भी थीं, जो इस समय 90 साल की हैं और अमेरिका में रहती हैं। वे भी अपने पिता के साथ जहाज से कूदी थीं। इस हादसे में उनकी मां और 3 भाइयों की मौत हो गई थी। हम सभी एक ही वोट पर थे। वोट में कुछ बिस्कुट और जरूरी सामान था। इसी के सहारे हम लोगों की जान बच पाई।
- नेताजी को इसी पनडुब्बी ने बचाया था
यह प्रश्न अभी तक अनुत्तरित है कि I-29 ने आखिर एसएस तिलावा पर हमला क्यों किया? चूंकि यह व्यापारिक जहाज था, इसलिए क्या जापानी यह जानते थे कि इस जहाज पर कीमती सामान है? ऐसे ही कई और भी प्रश्न हैं, जिनका जवाब मिलना शेष है। लेकिन, I-29 से जुड़ा एक और वाकया है, जिसका सीधा संबंध भारत से ही है। दरअसल, तिलवा त्रासदी के 5 महीने बाद यानी 28 अप्रैल 1943 को सुभाष चंद्र बोस को इसी पनडुब्बी से बचाया गया था। उस समय ऐसी अफवाहें थीं कि सुभाष बाबू हिटलर के मित्र हैं। नेताजी जर्मन सबमरीन में एक बैठक में गए थे, जहां से उन्हें I-29 के जरिए ही जापान लाया गया था।
फोटो : tilawa1942.com से साभार
: Vrijendra Singh Jhala