देश की आजादी से जुड़ा सबसे रहस्यमयी आंदोलन, कैसे एक रोटी ने अंग्रेजों को डराया?

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आज उठा है फिर वह मानव, एक रोटी की आस में 
जीवन के इन संघर्षों में लड़ता है वह एक रोटी की आस में 
भोर हुई फिर हुआ अंधियारा, एक रोटी की आस में 
श्रीकृष्ण से मिलने गए सुदामा, एक रोटी की आस में।
आशुतोष शर्मा की ये चंद पंक्तियां शायद कुछ खास वर्ग के लोगों ने न सुनी हो जो रोटी की कीमत समझता है, वह इन शब्दों के मोल से भली-भांति परिचित है। रोटी ही वो चीज है कि जिसके लिए गरीब दामन फैलाता है और अमीर अपना बटुआ। कहते हैं कि इस धरती पर मनुष्य जो कुछ भी करता है उसके पीछे रोटी की ही आस होती है। यानी कुल मिलाकर कहें तो रोटी प्रेरण भी है, ताकत भी और सपना भी। रोटी की इससे अच्छी परिभाषा नहीं हो सकती और मार्च 1857 के चपाती आंदोलन से बड़ा उदाहरण कोई और नहीं हो सकता।

 

 

 

 

 

 

मार्च 1857 में ईस्ट इंडिया कंपनी के एक सैन्य सर्जन डॉ. गिल्बर्ट हाडो ने ब्रिटेन में अपनी बहन को लिखे एक पत्र में 1857 में चल रहे एक अजीब आंदोलन का वर्णन करते हुए निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखीं। भारतीय इतिहास में यह खत अकेला सबूत है कि भारत में ऐसा भी कोई आंदोलन हुआ था।
“इस समय पूरे भारत में एक सबसे रहस्यमयी मामला चल रहा है। इसका अर्थ कोई नहीं जानता। यह ज्ञात नहीं है कि इसकी उत्पत्ति कहाँ हुई, किसके द्वारा या किस उद्देश्य से हुई, क्या इसे किसी धार्मिक समारोह से जोड़ा जाना चाहिए या फिर इसका किसी गुप्त समाज से संबंध है या नहीं। भारतीय अखबार इस बारे में अनुमानों से भरे हैं कि इसका क्या मतलब है। इसे चपाती आंदोलन कहा जा रहा है।” डॉ. हाडो 1857 में पूरे देश में हाथ से गांव और गांव से गांव में पारित होने वाली हजारों चपातियों के विचित्र और अकथनीय वितरण का वर्णन कर रहे थे।
  • एक गांव से दूसरे गांव तक चपातियों का सफर 
1857 के विद्रोह के दौरान गोल दिखने वाली चपातियों से ब्रिटिश अधिकारी काफी परेशान थे। 1857 में अंग्रेजों के कब्जे वाले भारत में तनाव सर्वकालिक उच्च स्तर पर था। शोषक ब्रिटिश शासन से परेशान हो चुके असंतुष्ट भारतीय चुपचाप विद्रोह की योजना बना रहे थे। उसी साल फरवरी में एक अजीब बात घटने लगी। रात में पूरे भारत में घरों और पुलिस चौकियों में हजारों अचिह्नित चपातियां वितरित की गईं, चुपचाप उन्हें वितरित किया गया। मथुरा शहर के मजिस्ट्रेट मार्क थॉर्नहिल ने इस आंदोलन का खुलासा किया, जिन्होंने कुछ जांच की और पाया कि चपातियां हर रात के बोरे में एक गांव से दूसरे गांव पहुंच रहे थे। हर जगह दक्षिण में नर्मदा नदी से लेकर नेपाल की सीमा तक कई सौ मील की दूरी पर। नम्र चपाती का यह रहस्यमय ढंग से तेजी से वितरण उसे समझाने के लिए पर्याप्त था कि कुछ चल रहा था।

 

 

 

 

 

  • पुलिसवाले भी थे शामिल 
इस विचित्र वितरण को लेकर तफ्तीश की गई, कई थ्योरी भी दी गई। लेकिन कुछ भी शर्तियां तौर पर सामने नहीं आ सका। चूँकि चपाती तो एक खाने का पदार्थ है और उस पर कुछ भी लिखा नहीं होता था न ही कोई चिन्ह बना होता था। इसके साथ ही कई भारतीय पुलिसकर्मी भी स्वयं भी चपाती बनाने और बांटने में सहयोग कर रहे थे। ऐसे में अंग्रेज चपाती बांटने वालों को रोकने या गिरफ्तार करने के लिए आधार खोजने में असमर्थ साबित हुए।
  • चपाती बांटने वाले भी रहस्य से अंजान
दिलचस्प बात ये है कि चपाती वितरित करने वाले भी दूसरे के घरों तक इसे पहुंचाने के रहस्य से अंजान थे। उन्हें भी ये नहीं ज्ञात था कि आखिर ये काम क्यों किया जा रहा है। चपातियाँ असली थीं, लेकिन कोई भी, यहाँ तक कि ले जाने वालों को भी नहीं पता था कि वे किस लिए हैं। कहा जाता कि गांव में एक अंजान व्यक्ति आकर उन्हें रोटियों की बोरी थमाकर चला जाता। इसके साथ ही संदेश होता कि रोटियां बनाओं और दूसरे गांव में पहुंचाओं।
  • तात्या टोपे की मुहिम का हिस्सा?
1857 के विद्रोह के कुछ सालों बाद जेडब्ल्यू शेरर ने अपनी पुस्तक लाइफ फॉर द इंडियन रिववॉल्ट में लिखा था कि 1857 के संग्राम की रणनीति बहुत ही रहस्यमयी और बैचेनी पैदा करने वाली थी। लेकिन ये एक शानदार प्रयोग था, जिसे बेहतर ढंग से अंजाम दिया गया। बाद में कुछ अध्ययनों में कहा गया कि 1850 में तात्या टोपे ने इस रणनीति को शुरू किया था जिसे 1857 में अंजाम दिया गया। चपाती आंदोलन भी शायद इसी मुहिम का हिस्सा रही होगी। लेकिन 1857 का रहस्यमयी चपाती आंदोलन, जिसने अंग्रेजों को इतना परेशान कर दिया, औपनिवेशिक शासन के खिलाफ मनोवैज्ञानिक युद्ध का एक प्रभावी हथियार बन गया।
हालांकि हाल के अध्ययनों ने यह सिद्ध किया है कि चपातियों का प्रचलन हैजा से पीड़ित लोगों को भोजन पहुंचाने का एक प्रयास हो सकता है। हालाँकि, अनिर्णायक साक्ष्य के सामने, यह अभी के लिए ही कहा जा सकता है कि चपाती सिर्फ चपातियाँ थीं, न कि गुप्त संदेश या आसन्न विद्रोह की चेतावनी।
जितनी कहानियां उतनी बातें। लेकिन वास्तविकता ये है कि भारत का ये अनूठा आंदोलन अंग्रेजों के लिए हमेशा एक अबूझ पहेली बनकर रह गया। 
आकाश भगत

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