उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे आ गए हैं। 403 सीटों में से भाजपा गठबंधन ने 273 सीटों पर जीत हासिल करके पूर्ण बहुमत प्राप्त कर दिया है। इसके साथ ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर विधानसभा सीट से करीब 1 लाख से अधिक मतों से चुनाव जीत गए हैं। योगी आदित्यनाथ के लिए यह चुनाव की से अग्निपरीक्षा से कम नहीं थी।
समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से मिली कांटे की टक्कर के बावजूद भी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आने में कामयाब रहे। कहीं ना कहीं इसे योगी आदित्यनाथ के काम पर मुहर माना जा रहा है। दावा किया जा रहा है कि इन नतीजों से योगी आदित्यनाथ का कद और भी बड़ा हो जाएगा। पिछले 5 साल में योगी की राह में कई रोड़े जरूर आए लेकिन कहीं ना कहीं उन सब को पार करते हुए योगी आदित्यनाथ ने कामयाबी की नई गाथा लिखी है।
उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव-2022 में प्रचंड विजय की प्रतिबद्ध, कर्मठ व जुझारू कार्यकर्ताओं को हार्दिक बधाई।
जीत के कई फैक्टर
2017 में जब भाजपा ने वनवास खत्म कर सत्ता में वापसी की थी तो मुख्यमंत्री की रेस में कई नाम चले थे। लेकिन पार्टी ने योगी आदित्यनाथ के सिर मुख्यमंत्री का ताज सजा कर सबको चौंका दिया था। योगी के सामने सभी के बीच अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाना एक बड़ी चुनौती थी। लेकिन इस चुनावी नतीजे ने यह जाहिर कर दिया कि योगी ने राज्य में अपनी अलग पहचान बना ली है। 2017 में अनुभव की कमी के बावजूद भी योगी सीखते और समझते हुए सख्त एक्शन लेने में पीछे नहीं हटे। मोदी और अमित शाह की ओर से उन्हे जो भी टास्क दिया गया उसे जमीन पर उतारने में योगी ने पूरी ताकत झोंक दी।
पिछले 5 सालों में सख्त कानून व्यवस्था की वजह से योगी ने एक अलग मॉडल बनाया है। इसके अलावा हिंदुत्ववादी एजेंडे को लेकर भी वह लगातार आगे बढ़े हैं। विकास कार्यों के साथ-साथ आक्रमक सियासी एजेंडे के जरिए पार्टी और सरकार दोनों योगी ने लगातार मजबूती प्रदान की। जानकार बताते हैं कि योगी ने उत्तर प्रदेश में विकास कार्यों की रफ्तार को बेहतर बना दिया। केंद्र की योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। कोरोनावायरस से खुद संक्रमित होने के बावजूद भी उन्होंने पूरे राज्य का दौरा किया और बड़ा सियासी संदेश दिया। योगी के कोविड-19 मैनेजमेंट की तारीफ भी खूब हुई।
विपक्ष भले ही योगी के खिलाफ लगातार अलग-अलग नैरेटिव सेट करता रहा हो। कभी हाथरस का मुद्दा उठा तो कभी लखीमपुर का, कभी योगी के ब्राह्मण विरोधी होने का दावा किया गया तो कभी दलित और पिछड़े को दबाने का आरोप योगी सरकार पर लगा। लेकिन चुनावी नतीजों ने यह बता दिया कि योगी ने अपने 5 साल के कार्यकाल के दौरान प्रधानमंत्री के नारे सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास को साकार किया। योगी की राजनीति में उत्तर प्रदेश में जातिवाद की राजनीति को खत्म कर दिया। कानून व्यवस्था और विकास कार्य पर ही योगी को वोट मिले हैं।
‘बुलडोजर बाबा’ मिला नया नाम
अपराधियों और माफिया के खिलाफ ‘बुलडोजर’ चलाने का स्लोगन देकर उत्तर प्रदेश में बहुमत से सत्ता में लौटे योगी को उनके समर्थकों ने ‘बुलडोजर बाबा’ का नया नाम दिया है। विभिन्न हिस्सों में जीत से उत्साहित पार्टी कार्यकर्ताओं ने विजय जुलूस निकाला और ‘बुलडोजर बाबा जिंदाबाद’ का नारा लगाते हुए मुख्यमंत्री को नया नाम देते दिखे। राजधानी लखनऊ में भाजपा कार्यालय के बाहर तो कुछ उत्साहित समर्थकों ने बुलडोजर पर सवार होकर भगवा झंडा फहरा कर जीत का जश्न मनाया।
भाजपा के प्रबल समर्थक सुमंत कश्यप ने जीत की खुशी में अपने सिर पर बुलडोजर का खिलौना लगा रखा था। योगी आदित्यनाथ के निर्वाचन क्षेत्र गोरखपुर में समर्थकों ने बुलडोजर के बेड़े के साथ एक विजय जुलूस निकाला। इस दौरान समर्थक ‘बुलडोजर बाबा जिंदाबाद’ और ‘गूंज रहा है एक ही नाम बुलडोजर बाबा जय श्री राम’ के नारे लगा रहे थे। वाराणसी में भी समर्थकों ने बुलडोजर पर सवार होकर जीत का जश्न मनाया। प्रदेश में पार्टी की जीत के बाद जनता को धन्यवाद देते हुए उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने एक बयान में कहा कि लोगों ने कट्टर वंशवाद, जातिवाद, अपराधीकरण और विरोधियों के क्षेत्रवाद पर वोटों का बुलडोजर चलाया है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री 49 वर्षीय आदित्यनाथ को योगी होने के नाते अभी तक ‘महाराज जी’ के नाम से जाना जाता था। आदित्यनाथ गोरखपुर में स्थित गोरखनाथ मंदिर के प्रमुख भी हैं। गौरतलब है कि फरवरी से मार्च तक उत्तर प्रदेश में सात चरणों में हुए मतदान के लिए चुनाव प्रचार के दौरान तमाम नेताओं ने बार-बार ‘बुलडोजर’ शब्द का इस्तेमाल किया। यहां तक कि आदित्यनाथ ने भी अपनी कई चुनावी सभाओं में कहा कि ‘फिलहाल जो बुलडोजर रखरखाव (आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण) के लिए गए हैं, पार्टी की सत्ता में वापसी के साथ फिर से चलने शुरू हो जाएंगे।
तोड़े कई मिथक
उत्तर प्रदेश की राजनीतिक गलियारों में एक बात काफी दिनों से सुर्खियों में रहती थी। वह यह थी कि उत्तर प्रदेश का कोई भी मुख्यमंत्री अगर नोएडा आता है तो उससे दोबारा कुर्सी नहीं मिलती है। हालांकि योगी आदित्यनाथ 30 से ज्यादा बार नोएडा पहुंचे। उत्तर प्रदेश में 1988 में वीर बहादुर सिंह नोएडा आए थे और वह अगला चुनाव हार गए थे। उनके बाद 1989 में नारायण दत्त तिवारी आए थे जिसके बाद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था। कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। सत्ता में रहने के बावजूद में अखिलेश यादव कभी नोएडा दौरे पर नहीं आए थे। नोएडा के अलावा बिजनौर को लेकर भी मिथक था। बिजनौर में भी कोई भी मुख्यमंत्री जल्दी नहीं जाता था। हालांकि योगी आदित्यनाथ ने बिजनौर का भी दौरा किया।
उत्तर प्रदेश में सत्ता में आने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तीन दशकों में दूसरी बार यूपी में फिर से निर्वाचित होने वाली पार्टी के रूप में अपनी रिकॉर्ड दर्ज करा रही है।1985 के बाद 37 वर्षों के बाद यह भी पहली बार होगा, कि इस मामले में एक सत्तारूढ़ दल, भाजपा, भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में सत्ता में लौट सकती है। 1985 के बाद से राज्य में ऐसी कोई भी पार्टी दोबारा सत्ता में लौटने में विफल रही है, जो सत्ता में थी। 1991 में बहुमत हासिल करने के 26 साल बाद एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए सत्ता में वापसी कर रही है।