इस कथा को पढ़े या सुने बिना अधूरा रह जाएगा सकट चौथ व्रत, पढ़ें साहूकारनी और सकट देवता की कथा

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हिंदू धर्म में सकट चौथ का विशेष महत्व है। पंचांग के अनुसार माघ माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को सकट चौथ के रूप में मनाया जाता है। इस बार सकट चौथ 21 जनवरी 2022 (शुक्रवार) को है। सकट चौथ के व्रत के दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। सकट चौथ का शाब्दिक अर्थ है संकट चतुर्थी। इस दिन गणेश जी और चन्द्रमा का पूजन और दर्शन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत में सकट चौथ व्रत कथा का श्रवण करना आवश्यक होता है। वैसे तो इस व्रत से संबंधित बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं जैसे भगवन शिव और पार्वती जी का नदी किनारे चौपड़ खेलने की कथा, गणेश जी का अपने माता-पिता की परिक्रमा करने की कथा, कुम्हार का एक महिला के बच्चे को मिट्टी की बर्तनों के साथ आग में जलने वाली कथा आदि। लेकिन आज के इस लेख में हम आपको सकट चौथ पर गणेश जी की पूजा से संबंधित कथा बताएंगे। इस कथा के श्रवण के बिना इस व्रत को पूरा नहीं माना जाता और इसका फल भी नहीं मिलता-

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प्राचीन काल में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ किसी नगर में रहता था। वो दोनों पूजा-पाठ और दान बहुत करते थे। एक दिन साहूकारनी अपनी पड़ोसन के घर गयी। उस दिन सकट चौथ था और पड़ोसन पूजा कर रही थी। पड़ोसन की पूजा देख साहूकारनी को जिज्ञासा हुई कि वह कौन सी पूजा कर रही है। उसने पड़ोसन से पूछा तो पड़ोसन ने बताया कि आज सकट चौथ का व्रत है और वह उसी की पूजा कर रही है। इसमें वह गणेश जी की पूजा कर रही है। साहूकारनी ने सकट चौथ के बारे में और भी चीज़े जानने की इच्छा जताई। जैसे इसे करने से क्या लाभ होता है और इसकी विधि इत्यादि। पड़ोसन ने बताया कि इस व्रत को करने से गणेश जी की कृपा होगी और धन धान्य, सुहाग, पुत्र की प्राप्ति होगी।    
यह सुन कर साहूकारनी ने कहा कि अगर वह माँ बनती है तो सवा सेर तिलकुट करेगी और सकट चौथ व्रत भी रखेगी। गणेश जी ने साहूकारनी की मनोकामना पूर्ण कर दी और वह गर्भवती हो गई। अब साहूकारनी के मन में लालच आ गया, उसने फिर से कहा कि उसे पुत्र हुआ तो ढाई सेर तिलकुट करेगी। गणेश जी की कृपा से उसकी यह मनोकामना भी पूरी हो गयी और उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। अब साहूकारनी की लालसा और बढ़ गयी और उसने कहा कि अगर पुत्र का विवाह हो जाता है, तो वह सवा पाँच सेर तिलकुट करेगी। गणेश जी के आशीर्वाद से उसकी ये मनोकामना भी पूरी हो गयी और उसके बेटे का विवाह तय हो गया। परन्तु साहूकारनी ने ना कभी भी सकट व्रत किया ना ही तिलकुट किया। साहूकारनी की इस गलती से नाराज होकर गणेश जी ने उसे सबक सिखाने की सोची। जब उसके लड़के का विवाह होने वाला था तब गणेश जी ने अपनी माया से लड़के को पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। अब सभी लोग वर को खोजने लगे। बहुत खोजने के बाद भी जब वर नहीं मिला तो विवाह भी नहीं हो पाया।

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कुछ दिन बाद साहूकारनी की होने वाली बहु दूर्वा लेने अपनी सहेलियों के साथ जंगल में गई। वहाँ साहूकारनी का पुत्र ने पीपल के पेड़ पर बैठे हुए उसे आवाज़ लगाई ‘ओ मेरी अर्धब्याही।’ यह सुनकर सभी युवतियाँ डर गईं और वहाँ से भाग आईं, उस युवती ने सारी घटना अपनी माँ को बताई। तब सब लोग पेड़ के पास पहुँचे। युवती की माँ ने देखा कि पीपल के पेड़ के ऊपर उसका होने वाला दामाद बैठा हुआ है। उसने लड़के से यहाँ बैठने का कारण पूछा तो उसने अपनी माँ की गलती बताई। उसने बताया कि मेरी माँ ने तिलकुट करने और सकट व्रत रखने का वचन दिया था पर दोनों ही नहीं किया। सकट देव इस कारण नाराज़ हैं। उन्होंने ही मुझे इस पीपल के पेड़ पर बिठा दिया है। यह सुनकर युवती की माँ तुरंत साहूकारनी के पास गयी और उसे सारी बात बताई। तब साहूकारनी को अपनी गलती का एहसास हुआ।
तब साहूकारनी ने कहा कि हे सकट महाराज, जब मेरा बेटा घर आएगा तो मैं ढाई मन तिलकुट करुँगी । गणेश जी ने साहूकारनी की बात मान ली और उसे एक मौका और दिया। उसका बेटा घर लौट आया और उसका विवाह भी हो गया। इसके बाद साहूकारनी ने ढाई मन का तिलकुट किया और सकट व्रत भी रखा। साहूकारनी ने मन ही मन गणेश जी का धन्यवाद दिया और कहा कि हे सकट देव, अब मैं आपकी महिमा समझ गयी हूँ। आपकी कृपा से अब मेरी संतान सुरक्षित और सुखी है। अब मैं सदैव तिलकुट करुँगी और सकट चौथ का व्रत रखूंगी। इसके बाद उस नगर में सकट चौथ का व्रत और तिलकुट धूमधाम से होने लगा।
 
– प्रिया मिश्रा 

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