क्या कांग्रेस बरकरार रख पाएगी सत्ता या फिर बदलेंगे समीकरण ? ऐसा रहा है पंजाब के मुख्यमंत्रियों का कार्यकाल
पंजाब में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने अपनी कमर कस ली है। कांग्रेस जहां अंतर्कलह से जूझ रही है वहीं आम आदमी पार्टी जनता से मुख्यमंत्री उम्मीदवार के लिए राय मांग रही है। इसके लिए पार्टी ने एक नंबर जारी किया है। जबकि अकाली दल के बिना चुनावी मैदान पर उतरने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ मिलकर रणनीति तैयार की है। पंजाब की 117 विधानसभा सीटों के लिए 14 फरवरी को मतदाता डाले जाएंगे। जबकि 14 मार्च के दिन यह तय होगा कि सूबे का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। ऐसे में हम आपको पंजाब के मुख्यमंत्रियों के बारे में जानकारी दे देते हैं।
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गोपी चंद भार्गव (कांग्रेस):- संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री गोपी चंद भार्गव एक गांधीवादी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। उनके जीवन का मूल समाज की सेवा करना था। लाहौर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद 1913 में उन्होंने चिकित्सकीय कार्य शुरू कर दिया था। हालांकि साल 1919 में हुए जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड ने उन्हें अंदर तक तोड़ कर रख दिया था और फिर उन्होंने राजनीति में आने का मन बना लिया और फिर हर आंदोलन का हिस्सा रहे और जेल भी गए। साल 1946 में गोपी चंद्र भार्गव विधानसभा के सदस्य चुने गए। इसके बाद आजाद भारत में लौह पुरुष सरदार पटेल के कहने पर उन्होंने संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया था। इसके बाद 18 अक्टूबर, 1949 को वो दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और फिर 21 जून, 1964 में उन्हें तीसरी बार कुर्सी सौंपी गई। हालांकि वो 15 दिन तक ही पद पर रहे।
भीम सेन सच्चर (कांग्रेस):- भीम सेन सच्चर पंजाब के दूसरे मुख्यमंत्री हैं। कांग्रेस से आने वाले भीम सेन सच्चर को दो बार प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई। पहली बार 13 अप्रैल, 1949 से लेकर 18 अक्टूबर, 1949 तक और फिर दूसरी बार 17 अप्रैल, 1952 से लेकर 23 जनवरी, 1956 तक वो मुख्यमंत्री पद पर रहे। इसके बाद भीम सेन सच्चर उड़ीसा और आंध्र प्रदेश के राज्यपाल पद पर रहे।
प्रताप सिंह कैरों (कांग्रेस):- भारत की आजादी में महत्वपूर्ण योगदान निभाने वाले प्रताप सिंह कैरों ने साल 1926 में कांग्रेस ज्वाइन की थी। उस वक्त से जब तक देश को स्वतंत्रता नहीं मिली, तब तक वो कांग्रेस के हर एक आंदोलन में सम्मिलित होते रहे। इसके बाद आजाद भारत में उन्हें पंजाब की जिम्मेदारी सौंपी गई। उन्होंने अपने विवेक के दम पर उबलते हुए पंजाब को शांत रखा और उन्होंने मास्टर तारासिंह के आंदोलन को भी समाप्त कर दिया था। हालांकि उनपर पक्षपात और भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे, जिसकी वजह से उन्होंने साल 1964 को मुख्यमंत्री पद का त्याग कर दिया था।
राम किशन (कांग्रेस):- पंजाब के कोटलाशाह में नवंबर, 1913 को जन्में राम किशन एक स्वतंत्रता सेनानी थी और फिर आजाद भारत में 7 जुलाई, 1964 को पंजाब के मुख्यमंत्री बने थे। उनका कार्यकाल 2 साल का ही था। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ मुखरता से बोलने वाले राम किशन को कॉमरेड का उपाधि दी गई थी।
गुरमुख सिंह मुसाफिर (कांग्रेस):- पंजाब के मुख्यमंत्री रहे गुरमुख सिंह मुसाफिर पंजाबी भाषा के लेखक भी थे। उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल 1 नवंबर, 1966 से लेकर 8 मार्च, 1967 तक रहा। इतना ही नहीं उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है।
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गुरनाम सिंह (शिअद):- गुरनाम सिंह दो बार पंजाब के मुख्यमंत्री बने और दोनों बार ही उनका कार्यकाल छोटा रहा। पहली बार 8 मार्च, 1967 से लेकर 25 नवंबर, 1967 और फिर 17 फरवरी, 1969 से लेकर 27 मार्च, 1970 तक मुख्यमंत्री रहे। इतना ही नहीं गुरनाम सिंह को पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के पहले मुख्यमंत्री थे।
लखमन सिंह गिल (शिअद):- लक्ष्मण सिंह गिल पंजाब के 12वें मुख्यमंत्री थे। उनका कार्यकाल 25 नवंबर, 1967 से लेकर 22 अगस्त, 1968 तक रहा। लखमन सिंह गिल उन शिअद नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने गुरनाम सिंह के खिलाफ विद्रोह किया था और फिर कांग्रेस के समर्थन से एक अल्पमत सरकार का गठन किया था।
जैल सिंह (कांग्रेस):- पंजाब के मुख्यमंत्री रह चुके ज्ञानी जैल सिंह बाद में भारते के सातवें राष्ट्रपति बने थे। उन्होंने 17 मार्च, 1972 से लेकर 30 अप्रैल, 1977 तक मुख्यमंत्री पद संभाला था। इसके बाद 25 जुलाई, 1982 में उन्होंने महामहिम पद की शपथ ली थी।
दरबारा सिंह (कांग्रेस):- साल 1980 के विधानसभा चुनाव में नकोदर सीट से चुनाव जीतने वाले दरबारा सिंह ने 17 फरवरी, 1980 को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त हुए थे। उस वक्त पंजाब काफी अशांत हुआ करता था, हिंसक घटनाओं में लगातार वृद्धि देखी जा रही थी। दरबारा सिंह ने 3 साल तक सत्ता संभाली और फिर पंजाब में राष्ट्रपति शासन लग गया था।
सुरजीत सिंह बरनाला (शिअद):- सुरजीत सिंह बरनाला ने तकरीबन दो साल तक मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की सेवा की। इसके बाद पंजाब में राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। सुरजीत सिंह बरनाला का कार्यकाल 29 सिंतबर, 1985 से लेकर 11 जून, 1987 तक रहा। इसके बाद उन्होंने तमिलनाडु, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के राज्यपाल के रूप में कार्य किया।
सरदार बेअंत सिंह: कांग्रेस के दिग्गज नेता बेअंत सिंह 3 सालों तक मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की सेवा की। साल 1992 के चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली और बेअंत सिंह को मुख्यमंत्री चुना गया था। उस वक्त उनके सामने अशांत प्रदेश में वापस शांति बहाली करने की चुनौती थी। माना जाता है कि उन्होंने अलगाववादियों के खिलाफ सफलता भी हासिल की थी लेकिन 31 अगस्त, 1995 को मुख्यमंत्री कार्यालय के बाहर कार में बम विस्फोट होने से उनकी मौत हो गई।
हरचरण सिंह ब्रार (कांग्रेस):- सरदार बेअंत सिंह की कार बम धमाके में हत्या हो जाने के बाद हरचरण सिंह ब्रार को प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई। हरचरण सिंह ब्रार पंजाब के 13वें मुख्यमंत्री थे और 31 अगस्त, 1995 से लेकर 21 नवंबर, 1996 तक इस पद पर रहे।
रजिंदर कौर भट्ठल (कांग्रेस):- पंजाब की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल का कार्यकाल महज ढ़ाई महीने का था। वो 21 नवंबर, 1996 से लेकर 11 फरवरी, 1997 तक इस पद पर रहीं। इसके बाद प्रदेश में शिअद की सरकार का गठन हुआ।
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प्रकाश सिंह बादल (शिअद):- साल 1967 के विधानसभा चुनाव में अकाली दल ने जीत दर्ज की थी और प्रकाश सिंह बादल को 27 मार्च, 1970 को पहली बार मुख्यमंत्री बने थे। उनका कार्यकाल 1 वर्ष, 79 दिन का रहा। इसके बाद अकाली दल ने 1977 के चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया और फिर प्रकाश सिंह बादल ने प्रदेश की गद्दी संभाली। यह ऐसा समय था जब सरकारें पार्टी के भीतर आंतरिक संघर्ष और सत्ता संघर्ष के कारण लंबे समय तक सत्ता में नहीं रहीं। उस वक्त प्रकाश सिंह बादल का कार्यकाल 2 वर्ष, 242 दिन का था। उन्होंने 1980 तक सत्ता संभाली थी। शिरोमणि अकाली दल साल 1997 में और फिर 2007 से लेकर 2017 तक सत्ता में रही।
अमरिंदर सिंह:- साल 2017 में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद अपने दम पर कांग्रेस को चुनाव जिताने वाले अमरिंदर सिंह प्रदेश के मुखिया बने। लेकिन साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में जारी अंतर्कलह के बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी और उन्होंने पंजाब लोक कांग्रेस का गठन कर लिया। इतना ही नहीं उन्होंने भाजपा के साथ मिलकर कांग्रेस को सीधे चुनौती देने की भी रणनीति तैयार कर ली है। आपको बता दें कि अमरिंदर सिंह और प्रकाश सिंह बादल ही एकमात्र मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया है।
चरणजीत सिंह चन्नी:- चरणजीत सिंह चन्नी पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री हैं। पंजाब कांग्रेस में लंबे समय तक चली अंर्तकलह के बाद उन्हें 20 सितंबर 2021 को प्रदेश की कमान सौंपी गई। वे पंजाब के 27वें मुख्यमंत्री बने। इसके साथ ही वह राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री भी हैं। 2017 में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने अमरिंदर सिंह को सत्ता सौंपी थी। लेकिन अपमानित महसूस करने के बाद अमरिंदर सिंह ने मुख्यमंत्री पद त्याग दिया और कांग्रेस को अलविदा कहते हुए अपनी खुद की पार्टी बना ली। आपको बता दें कि आगामी चुनाव को लेकर कांग्रेस ने अभी तक चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है। लेकिन पार्टी उन्हीं के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरने वाली है। चरणजीत सिंह के राजनीतिक जीवन की शुरुआत 2007 में हुई थी जब उन्होंने चमकौर साहिब विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीता था। इसके बाद 2012 और 2017 में भी वह विधायक चुने गए।