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लखनऊ : देश में वर्ष 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से जुड़े मामलों की जांच कर रही विशेष अनुसंधान टीम (एसआईटी) ने कानपुर के गोविंद नगर क्षेत्र में एक मकान के 36 साल से बंद कमरे को खोल कर मानव अवशेष तथा अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य इकट्ठा किये।

बताया जाता है कि इस कमरे में दो लोगों की कथित रूप से हत्या कर उनके शवों को वहीं पर जला दिया गया था।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उच्चतम न्यायालय के आदेश पर इस एसआईटी का गठन किया था जिसने मंगलवार को गोविंद नगर इलाके में यह सबूत इकट्ठा किए।

 

 

एसआईटी के पुलिस अधीक्षक बालेंदु भूषण ने बृहस्पतिवार को बताया कि गोविंद नगर में स्थित मकान के जिस कमरे को खोल कर सबूत एकत्र किए गए वह पिछले 36 साल से बंद था।

 

 

 

फॉरेंसिक टीम द्वारा की गई जांच में यह पता चला है कि मौका-ए-वारदात से खून के जो नमूने एकत्र किए गए हैं वह इंसान के ही हैं।
उन्होंने कहा कि इससे यह साबित हो गया है कि एक नवंबर 1984 को गोविंद नगर के उस घर में ताज सिंह (45) उर्फ तेजा और उनके बेटे सत्यपाल सिंह (22) की हत्या कर उनके शव उसी जगह जला दिए गए थे।

 

 

भूषण ने बताया कि ताज सिंह के दूसरे बेटे चरनजीत सिंह (61) अब दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने विशेष मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए गए बयान में लोमहर्षक रहस्योद्घाटन किया कि 1 नवंबर 1984 को किस क्रूर तरीके से उनके पिता और भाई की हत्या कर उनके शव जला दिए गए थे।

 

 

 

चरनजीत ने इस वारदात को अंजाम देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लोगों की पहचान भी जाहिर की है। उस वारदात में परिवार के जो सदस्य जिंदा बच गए वह अपना घर बेचकर पहले शरणार्थी शिविरों में गए।

पुलिस सूत्रों ने बताया कि जब ताज सिंह की पत्नी और परिवार के बाकी सदस्य कानपुर छोड़कर जा रहे थे, एक पुलिस उपनिरीक्षक ने अज्ञात लोगों के खिलाफ डकैती और हत्या, घर को ध्वस्त करने और सबूत मिटाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया था।

 

 

भूषण ने बताया कि जिन लोगों ने ताज सिंह के परिवार से वह मकान खरीदा था उन्होंने उन दो कमरों को कभी नहीं खोला जिनमें ताज सिंह और उनके बेटे की हत्या की गई थी। कमरे में मौजूद हर चीज अनछुई थी इसलिए एसआईटी को सुबूत एकत्र करने में कोई परेशानी नहीं हुई।

 

 

 

सुबूत एकत्र करने के लिए एसआईटी ने डॉक्टर प्रवीण कुमार श्रीवास्तव की अगुवाई में फॉरेंसिक टीम के साथ-साथ मामले के विवेचना अधिकारी पुनीत कुमार को मौका-ए-वारदात का बेहतर तरीके से परीक्षण करने के लिए बुलाया।

 

 

भूषण ने बताया कि करीब चार महीने पहले एसआईटी ने कानपुर के ही नौबस्ता इलाके में सिख विरोधी दंगों में मारे गए लोगों के खून के नमूने तथा अन्य सुबूत इकट्ठा किए थे। वहां सारदुल सिंह और उनके रिश्तेदार गुरुदयाल सिंह की हत्या करके उन्हें जला दिया गया था।

 

 

 

इस मामले में भी पीड़ित परिवार मकान में ताला लगा कर कहीं चला गया था। भूषण ने बताया कि सिख विरोधी दंगों के मामले में दर्ज सभी मामलों के पुनर्परीक्षण के लिए एसआईटी गठित की गई थी। कानपुर पुलिस ने गंभीर किस्म के 40 ऐसे मामलों की सूची उपलब्ध कराई थी जिनमें 127 सिखों की हत्या की गई थी।

 

 

 

पुलिस ने इन 40 मामलों में से 11 में अंतिम रिपोर्ट लगा दी थी और बाकी 29 मामलों की फाइल सुबूतों के अभाव में बंद कर दी गई थी। अदालत में जिन 11 मामले में चार्जशीट दाखिल की गई थी उनके आरोपियों को सुबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
भूषण ने बताया कि निचली अदालतों द्वारा पांच मामलों में दिए गए आदेशों के खिलाफ अपील के लिए राज्य सरकार से इजाजत मांगी गई है, जो अभी नहीं मिली है। जिन 29 मामलों की फाइलें सबूतों के अभाव में बंद कर दी गई थी, एसआईटी ने उनमें दोबारा जांच शुरू की है और नौ मामलों में आरोप पत्र दाखिल करने के लिए पर्याप्त सबूत भी मिले हैं। उन्होंने बताया कि बाकी मामलों की जांच संभव नहीं है क्योंकि उनमें कोई सुबूत नहीं मिला है।
भूषण ने कहा कि नौ मामलों में शिकायतकर्ताओं और गवाहों ने आगे आने से मना कर दिया है। 11 मामलों में एसआईटी की जांच अगले स्तर तक पहुंच चुकी है और आगे की कार्रवाई के लिए विधिक राय ली जा रही है।

 

 

गौरतलब है कि वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कानपुर में भी सिख विरोधी दंगे हुए थे। उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एसआईटी गठित कर उसे सिख विरोधी दंगों से जुड़े 1251 मामलों के पुन: जांच के आदेश दिए थे।

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आकाश भगत

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