Chhath Puja 2025: छठ व्रती परिवार की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देवता को देते हैं अर्घ्य

चार दिवसीय छठ पूजा शुरु हो गई है, सुख-समृद्धि, सौभाग्य की संकल्पना साकार करने के लिए सनातन धर्मावलंबी महिलाएं डाला छठ का कठिन व्रत कर रही हैं। त्याग की पराकाष्ठा के इस व्रत में व्रती उत्साह से ओतप्रोत होकर भजन-पूजन में लीन रहते हैं तो आइए हम आपको छठ पूजा व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।

जानें छठ महापर्व के बारे में 

छठ महापर्व केवल एक दिन का त्योहार नहीं है बल्कि यह चार दिनों तक चलने वाला महापर्व है। पहले दिन नहाय खाय होता है, जिसमें दाल-चावल और कद्दू की सब्जी खाया जाता है। इसके अगले दिन खरना होता है इस दिन छठ व्रती पूरी निष्ठा से छठी मइया को खीर का प्रसाद बनाकर भोग लगाती हैं। लोहंडा का यह प्रसाद घर-परिवार और पास-पड़ोस में जनमानस को ग्रहण कराने का विधान है। पंडितों के अनुसार खरना का प्रसाद ग्रहण करने से जीवन के सारे दूख दूर होते हैं। छठी मइया व्रती की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। 27 अक्टूबर, सोमवार को अस्ताचलगामी भगवान भाष्कर को संध्याकालीन अर्घ्य अर्पण किया जाएगा। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर छठ व्रती अपने परिवार की सुख-समृद्धि और संतति वृद्धि की कामना आदित्य देव से करते हैं। ऐसी मान्यता है कि ढलते सूरज को जल चढ़ाने से भगवान दिनकर छठ व्रती को भर-भरकर आशीष देते हैं।

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28 अक्टूबर, मंगलवार को उदीयमान सूर्य को प्रात:कालीन अर्घ्य दिया जाना है। इस दिन दीनानाथ के उगते स्वरूप का दर्शन कर छठ व्रती खुशहाली की कामना करती हैं। परिवार के लोग भी छठ व्रती को सामने से दूध-जल का अर्घ्य अपर्ण कर अपनी निष्ठा प्रकट करते हैं। छठी मइया से मंगल कामनाएं की जाती हैं। 
माता सीता ने यहां किया था यहां छठ महापर्व
बिहार में मुंगेर का लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा से खास और गहरा लगाव है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसकी शुरुआत मुंगेर के सीताचरण मंदिर से हुई थी। माता सीता ने यहां से छठ पर्व का अनुष्ठान किया था। यहां आज भी माता सीता की चरणपादुका मौजूद है। मंदिर परिसर में चार कुंड हैं, जो मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चारों भाइयों लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के नाम पर हैं। छठ महापर्व के विशेष महत्व के कारण मुंगेर के अलावा बिहार के दूसरे जिले से भी छठ व्रती यहां गंगा घाट पर छठी मइया को अर्घ्य देने पहुंचते हैं।
छठ प्रसाद के लिए बनाया जाता है ठेकुआ
छठ पूजा का सबसे खास प्रसाद ठेकुआ है। व्रती महिलाएं गेहूं के आटे में देशी घी और चीनी मिलाकर ठेकुआ बनाती हैं। अघर्य के दौरान उसे छठी मइया को अर्पित करती हैं। अगले दिन उसे ग्रहण करके व्रत का पारण करेंगी। छठी मइया को नींबू, नारंगी, गन्ना, नारियल, सिंघाड़ा व ठेकुआ अर्पित किया जाता है। नींबू व नारंगी का रंग पीला होता है। यह रंग शुभ होता है। गन्ना का मंडप बनाकर उसी के अंदर पूजा की जाती है। गन्ना समृद्धि का प्रतीक है, जबकि सिंघाड़ा रोगनाशक होता है। इसी प्रकार केला, सुपाड़ी, पान, अमरूद व नारियल भी पवित्र होते हैं। सूर्य आराधना से शांत होते हैं। छठ पूजा के दौरान प्रसाद के रूप में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, फलों और नारियल का प्रयोग किया जाता है। ये सभी प्रसाद शुद्ध सामग्री से बनाए जाते हैं और सूर्य देवता को अर्पित किए जाते हैं।
छठ पूजा में सूप का होता है इस्तेमाल 
छठ पूजा में बांस से बनी कई वस्तुओं का उपयोग किया जाता है, जिनमें सूप सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। सूप को सूर्य पूजा का अनिवार्य हिस्सा कहा गया है, क्योंकि इसके बिना यह अनुष्ठान अधूरा माना जाता है। सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते समय सूप का प्रयोग किया जाता है। इसमें फल, ठेकुआ और अन्य प्रसाद रखकर श्रद्धा के साथ सूर्य भगवान को समर्पित किया जाता है। यह सूप न केवल पूजा का साधन है, बल्कि भक्ति और परंपरा का प्रतीक भी है।
छठ पूजा में सूर्य देवता की होती है उपासना 
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ पूजा सूर्य देव (भगवान भास्कर) और उनकी बहन छठी मइया (ऊषा देवी) की उपासना के लिए की जाती है। सूर्य जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य के प्रतीक हैं, जबकि छठी मइया संतान, समृद्धि और कल्याण की देवी मानी जाती हैं।
छठ पर्व से जुड़ी मान्यता का भी है खास महत्व 
छठ पर्व मुख्य रूप कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाते हैं लेकिन इसके अलावा चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि का छठ पर्व जिसे चैती छठ कहते हैं यह भी काफी प्रचलित है। इस तरह दो छठ व्रत विशेष रूप से महत्व है। दोनों ही छठ पर्व भगवान सूर्य को और षष्ठी माता को समर्पित है। इसलिए छठ पर्व में भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। छठ मैया के बारे में कथा है कि यह ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं और सूर्यदेव की बहन हैं। छठ मैया को संतान की रक्षा करने वाली और संतान सुख देने वाली देवी के रूप में शास्त्रों में बताया गया है जबकि सूर्यदेव अन्न और संपन्नता के देवता है। इसलिए जब रवि और खरीफ की फसल कटकर आ जाती है तो छठ का पर्व सूर्य देव का आभार प्रकट करने के लिए चैत्र और कार्तिक के महीने में किया जाता है।
घर के कोने-कोने की होती है साफ-सफाई 
छठ पर्व में पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इस कारण नहाय-खाय से पहले घर के कोने-कोने की लोगों ने बेहतर ढंग से साफ-सफाई पूरी की। इसके बाद गंगा जल छिड़क कर घर का शुद्धिकरण किया। व्रतियों ने तम-मन से विधिवत स्नान किया। स्नान को कुछ व्रती गंगा घाट तक भी पहुंचे और स्नान के बाद साथ में गंगाजल लेकर लौटीं। शुद्धता के साथ सूर्यास्त से पूर्व मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी जलाकर चावल (अरवा) एवं कद्दू-चने दाल की प्रसाद बनाईं। खुद खाने के बाद स्वजनों को खिलाईं।
छठ पर्व के चार दिनों का खास महत्व
छठ पर्व मुख्य रूप से षष्ठी तिथि को किया जाता है। लेकिन इसका आरंभ नहाय खाय से हो जाता है यानी छठ पर्व शुरुआत में पहले दिन व्रती नदियों में स्नान करके भात,कद्दू की सब्जी और सरसों का साग एक समय खाती है। दूसरे दिन खरना किया जाता है जिसमें शाम के समय व्रती गुड़ की खीर बनाकर छठ मैय्या को भोग लगाती हैं और पूरा परिवार इस प्रसाद को खाता है। तीसरे दिन छठ का पर्व मनाया जाता है जिसमें अस्त होते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पर्व को समापन किया जाता है।
छठ पूजा की महत्वपूर्ण तिथियां
नहाय खाय (25 अक्टूबर 2025, शनिवार): छठ पूजा के पहले दिन, श्रद्धालु नदी या तालाब में स्नान करते हैं और केवल शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
खरना (26 अक्टूबर 2025, रविवार): दूसरे दिन, व्रती दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं। शाम को पूजा के बाद प्रसाद के रूप में खीर, रोटी और फल खाए जाते हैं।
संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर 2025, सोमवार): तीसरे दिन, व्रती सूर्यास्त के समय नदी या तालाब के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। यह छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।
प्रातःकालीन अर्घ्य (28 अक्टूबर 2025, मंगलवार): चौथे दिन, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है, जिसके बाद व्रती अपना व्रत तोड़ते हैं और प्रसाद वितरण करते हैं।
सनातन धर्म में छठ पूजा की है विशेष महिमा
छठ पूजा को सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इस दौरान श्रद्धालुओं को कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। यह व्रत परिवार की सुख-समृद्धि, संतान की दीर्घायु और रोगमुक्त जीवन के लिए किया जाता है। इस त्योहार के दौरान सूर्य की आराधना से हमें ऊर्जा और शक्ति मिलती है, जो जीवन में सकारात्मकता का संचार करती है।
– प्रज्ञा पाण्डेय