Jaya Ekadashi 2024: जया एकादशी व्रत होता है पुण्यदायी
आज जया एकादशी है, हिन्दू धर्म में एकादशी का खास महत्व है। इस व्रत से साधक को पापों से मुक्ति मिलती है तो आइए हम आपको जया एकादशी व्रत की पूजा विधि एवं महत्व के बारे में बताते हैं।
जाने जया एकादशी के बारे में
माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी कहते हैं। पंडितों का मानना है कि जो भी व्यक्ति व्रत रखकर इस दिन विष्णु भगवान का पूजन व्रत करता है, उसके जीवन में हर प्रकार के कार्यों में विजय की प्राप्ति होती है। यदि यह व्रत मंगलवार के दिन पड़ता है, तो इसे भीमा एकादशी व्रत भी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के करने से ब्रह्म हत्या जैसे पापों से भी मुक्ति मिलती है और व्यक्ति को भूत-प्रेत और पिशाच योनि की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती।
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जया एकादशी का महत्व
पंडितों का मानना है कि इस एकादशी का व्रत करने वाले साधक को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। यही नहीं वह व्यक्ति भूत-प्रेत इत्यादि योनियों से भी मुक्त हो जाता है। जया एकादशी व्रत बेहद शक्तिशाली व्रत है जो व्यक्ति को उसके पापों से मुक्त कराता है। इसके साथ ही व्रत करने वाले व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर भी विजय प्राप्त होती है। माघ का महीना भगवान शिव की पूजा के लिए शुभ होता है। जया एकादशी को दक्षिण भारत में विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में ‘भूमि एकादशी’ और ‘भीष्म एकादशी’ के रूप में भी जाना जाता है।
जया एकादशी से जुड़ी कथा
पदमपुराण में जया एकादशी की कथा का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार एक बार स्वर्ग के राजा इन्द्र अप्सराओं के साथ नन्दन वन में थे। उस समय वहां गंधर्व भी मौजूद थे। उनमें गंधर्व कन्या पुष्पवती गंधर्व पुत्र माल्यवान पर मोहित हुई और उसके ऊपर कामबाण का प्रयोग करने लगी। इससे माल्यवान का ध्यान भंग हो गया। देवराज इन्द्र ने जब देखा तो वह क्रुध हुए और उन्होंने दोनों को पिशाच रूप धारण कर मृत्यु लोक में फल भोगने का अभिशाप दे दिया। वे दोनों हिमालय पर जीवन व्यतीत करने लगे। जया एकादशी के दिन दोनों पीपल के नीचे अन्न-जल ग्रहण किए बिना बैठे रहे। इस प्रकार उनका एकादशी का व्रत पूरा हुआ और उन्हें पिशाच योनि से छुटकारा मिला। इसके बाद वह स्वर्ग को चल दिए।
भगवान विष्णु पूजन मंत्र
श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय।।
ॐ ह्रीं कार्तविर्यार्जुनो नाम राजा बाहु सहस्त्रवान। यस्य स्मरेण मात्रेण ह्रतं नष्टं च लभ्यते।।
जया एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
सनातन धर्म में एकादशी तिथि के व्रत-पूजन का सर्वाधिक महत्व बताया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार माघ महीने की शुक्ल पक्ष की जया एकादशी तिथि 19 फरवरी को सुबह 08 बजकर 49 मिनट से शुरू होगी। साथ ही इसका समापन अगले दिन 20 फरवरी, सुबह 09 बजकर 55 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदयातिथि का महत्व है इसलिए एकादशी व्रत 20 फरवरी दिन मंगलवार को रखा जाएगा।
जया एकादशी पर ऐसे करें पूजा
एकादशी के दिन स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करें। जया एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी की भी पूजा करें। पूजा में धूप, दीप, तिल और पंचामृत का प्रयोग करें। पूजा में गोमती चक्र और पीली कौडी भी रखनी चाहिए। इस दिन पूजा में केले अवश्य चढ़ाए और केले को गरीबों में भी बाटें। व्रत करने वाला व्यक्ति रात में जागरण भी करें। अगर जागरण सम्भव न हो तो रात में फलाहार ग्रहण करें। इससे साधक को लाभ होता है।
जया एकादशी के दिन करें ये उपाय
जया एकादशी व्रत वाले दिन सुबह स्नान के बाद घी का दीपक जलाकर भगवान विष्णु का आह्वान करें। इससे भगवान विष्णु शीघ्र प्रसन्न होते हैं और घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी जी की भी पूजा करनी चाहिए। पंडितों का मानना है कि ऐसा करने से जीवन में तरक्की आती है। इस दिन जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए उन्हें पीले वस्त्र, पीले फूल, पीले रंग की पुष्प माला, मिठाई, फल आदि अर्पित करें। फिर बाद गाय को चारा खिलाएं और जरूरतमंद को कुछ दान करें।शास्त्रों के अनुसार पीपल में भगवान विष्णु का वास होता है। इसलिए इस दिन पीपल के वृक्ष की पूजा जरूर करनी चाहिए। जया एकादशी के दिन किसी मंदिर में स्थित पीपल के वृक्ष को जल चढ़ाएं और उसके समीप देसी घी का दीपक जलाएं। एकादशी के दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। इस दिन केवल एक बार भोजन करें और वो भी फलाहार ही होना चाहिए। साथ ही इस दिन चावल खाने से बचें।
जया एकादशी व्रत में करें इनका पालन
जया एकादशी को दो तरह से रखा जाता है। पहला निर्जला व्रत और दूसरा फलाहार व्रत या रसाहार व्रत। निर्जला व्रत के बारे में यह याद रखें कि निर्जला व्रत स्वस्थ व्यक्ति को करना रहना चाहिए। बेहतर यह होगा कि इस केवल जल और फल का ही सेवन करें।
जया एकादशी व्रत में ये न करें
पंडितों के अनुसार जया एकादशी के दिन व्यक्ति को चावल, पान, बैंगन, गोभी, जौ या पालक का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से दोष उत्पन्न होने का भय बढ़ जाता है। इस दिन मदिरा, मांस, प्याज व लहसुन का सेवन नहीं करना चाहिए। सात्विक आहार ही ग्रहण करें।
जया एकादशी व्रत की महिमा
पुराणों में माघ महीना को बड़ा ही पुण्यदायी कहा गया है। इस महीने में स्नान, दान, व्रत का फल अन्य महीनों से अधिक बताया गया है। माघ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी को ‘जया एकादशी’कहते हैं। यह एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है, इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को नीच योनि से मुक्ति मिलती है। पदम् पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को एकादशी तिथि का महत्त्व बताते हुए कहा है कि जया एकादशी प्राणी के इस जन्म एवं पूर्व जन्म के समस्त पापों का नाश करने वाली उत्तम तिथि है। इतना ही नहीं, यह ब्रह्मह्त्या जैसे जघन्य पाप तथा पिशाचत्व का भी विनाश करने वाली है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से प्राणी को कभी भी पिशाच या प्रेत योनि में नहीं जाना पड़ता और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि जिसने ‘जया एकादशी ‘ का व्रत किया है उसने सब प्रकार के दान दे दिए और सम्पूर्ण यज्ञों का अनुष्ठान कर लिया । इस व्रत को करने से व्रती को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है। यह भी मान्यता है कि जो साधक इस व्रत को पूरे श्रद्धाभाव से करता है उसे भूत-प्रेत और पिशाच योनि की यातनाएं नहीं झेलनी पड़ती।
जया एकादशी में पारण का समय
एकादशी के व्रत समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी का पारण द्वादशी के दिन होता है। द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर जनेऊ और सुपारी देकर विदा करने के बाद ही भोजन ग्रहण करें।
– प्रज्ञा पाण्डेय