वीर बलिदानी बाबू वीर कुंवर सिंह जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों की बदौलत आज देश आज़ाद है : रामरंजन

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  • बाबू वीर कुंवर सिंह की स्मृति में आयोजित विजयोत्सव कार्यक्रम अनेकानेक विद्वतजन एवं श्री गुरूदेव कोचिंग सेंटर सह नवीन युग विद्यालय, पाकुड़ के छात्र-छात्रा शामिल हुए

झारखण्ड/पाकुड़ : महानायक बाबू वीर कुंवर सिंह की स्मृति में श्री गुरुदेव कोचिंग सेंटर, पाकुड़ के परिसर में आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर श्री सारस्वत स्मृति के अध्यक्ष भागीरथ तिवारी, प्रो. मनोहर कुमार, योगाचार्य संजय शुक्ला, ई.रमेश सिंह, रतनसेन, प्रवीण सिंह, अरुण सिंह, सुकुमार सिंह, धर्मेन्द्र तिवारी, बिरेन्द्र सिंह, सितेश सिंह, धर्मेन्द्र सिंह, कुन्दन सिंह, रंजय कुमार राय, अजय कुमार, दक्षराज टिवड़ीवाल, उत्तम कुमार भगत, हेमकेश भंडारी, तरुण कुमार साह सहित कोचिंग के सभी छात्र-छात्राओं ने शामिल होकर उनके चित्र पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया।

 

 

 

मौके पर भागीरथ तिवारी ने कहा कि 23 अप्रैल, 1858 को अपने गांव जगदीशपुर के किले पर फतह पाई थी और ब्रिटिश झंडे को उतारकर अपना झंडा फहराया था। यही वजह है कि 23 अप्रैल का दिन उनके विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने जो हिम्मत और साहस का परिचय दिया, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है। उनके अंदर नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। बाबू वीर कुंवर सिंह ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता और आन बान के साथ लड़ाई लड़ने का काम किया था। गनीमत थी कि युद्ध के समय वीर कुंवर सिंह की उम्र 80 के करीब थी, अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता।

 

इस मौके पर रामरंजन कुमार सिंह ने कहा कि हमें अपना इतिहास सदैव याद रखना चाहिये। इतिहास से सीख लेनी चाहिये और इतिहास गढ़ने की भी कल्पना करनी चाहिये। जब तक सूरज और चन्द्रमा रहेगा, तब तक बाबू वीर कुँवर सिंह की कृति रहेगी।

 

अपने सम्बोधन में संयोजक प्रो. मनोहर कुमार ने कहा भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी, महानायक, वीर बांकुरा, बाबू वीर कुंवर सिंह ने 23 अप्रैल 1958 को जगदीशपुर के किले को अंग्रेजों से छुड़ाए थे, इसी परिपेक्ष्य में समस्त देशवासियों के द्वारा हर वर्ष 23 अप्रैल को विजयोत्सव मनाया जाता है। भारत सरकार आजादी के 75 में वर्ष को बाबू वीर कुंवर सिंह के बिजयोत्सव 23 अप्रैल को “अमृत महोत्सव” के रूप में देश मना रहा है। वीर कुंवर सिंह को समस्त देशवासी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। उपस्थित समस्त विद्वतजनों ने भी अपने अपने विचारों के माध्यम से बाबू वीर कुवँर सिंह के शौर्य की गाथा सुनाये।

बाबू वीर कुंवर सिंह पर कविवर मनोरंजन जी की एक कविता बहुत प्रसिद्धि पाई ,अष्टम के छात्र वंश सिंह ने गाकर सुनाय जो इस प्रकार है:

“मस्ती की थी छिड़ी रागिनी, आजादी का गाना था,
भारत के कोने-कोने में, होगा यह बताना था,
उधर खड़ी थी लक्ष्मी बाई और पेशवा नाना था,
इधर बिहारी वीर बांकुड़ा, खड़ा हुआ मस्ताना था,
अस्सी वर्षों की हड्डी में जागा जोश पुराना था,
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था ।

 

 

 

 

लक्ष्मी,सर्मिष्ठा,रीचा,सोनी,पूर्वा एवं स्नेहा ने अपनी आवाज में छात्राओं ने गाकर सुनाया :

दुश्मन तट पर पहुंच गए जब कुवँर सिंह करते थे पार,
गोली लगी बाँह में दायां हाथ हुआ बेकार ,
हुई अपावन बाहु जान बस काट दिया लेकर तलवार ,
ले गंगे, यहां हाथ आज तुझको ही देता हूं उपहार,
वीर मात की वही जाह्नवी को मानो नजराना था,
सब कहते हैं कुवँर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

यही कुवँर सिंह की अंतिम विजय थी, यही अंतिम संग्राम ,
आठ महीने लड़ा शत्रु से बिना किए कुछ भी विश्राम,
घायल था वह वृद्ध केसरी थी सब शक्ति हुई बेकार,
अधिक नहीं टिक सका और वीर चला थक कर सुरधाम,
तब तब भी फहरा दुर्ग पर उसका विजय निशाना था,
सब कहते हैं कुंवर सिंह भी बड़ा वीर मर्दाना था।

आकाश भगत

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