सांसदों को कैसे और कब निलंबित किया जाता है, क्या ये वापस भी हो सकता है?

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29 नवंबर से संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत हो गई। सत्र का पहला दिन ही हंगामेदार रहा। राज्यसभा में तो 12 सांसदों को पूरे शीतकालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। राज्यसभा के एतिहास में इतना बड़ा निलंबन कभी नहीं हुआ। विपक्ष की तरफ से निलंबन पर सवाल उठाए जा रहे हैं। निलंबन के खिलाफ प्रस्ताव पर भी विचार हो रहा है। इसके साथ ही निलंबित सांसद माफी मांगने की रणनीति पर भी विचार करते नजर आ रहे हैं। दरअसल, कृषि कानूनों के बहाने सरकार को घेरा जाना था। लेकिन सरकार ने बिना चर्चा के ही कृषि कानून रद्द करने का बिल पास करा लिया। हंगामा हुआ तो 12 सांसदों निलंबन का रास्ता दिखा दिया गया। वो भी एक-दो दिन के लिए नहीं बल्कि पूरे सत्र के लिए। 

इन 12 सांसदों का हुआ निलंबन

ई करीम (सीपीएम)

फूलो देवी नेताम (कांग्रेस)

छाया वर्मा (कांग्रेस)

रिपुन बोरा (कांग्रेस)

बिनॉय  विश्वम ( सीपीआई)

 राजमणि पटेल (कांग्रेस)

डोला सेन (टीएमसी)

शांता छेत्री (टीएमसी)

नासिर हुसैन (कांग्रेस)

प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना)

अनिल देसाई (शिवसेना)

अखिलेश प्रसाद सिंह (कांग्रेस)

संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने 12 राज्यसभा सांसदों (कांग्रेस के छह, तृणमूल कांग्रेस और शिवसेना के दो-दो और सीपीआई और सीपीआई-एम के एक-एक) को शेष के लिए निलंबित करने के लिए सदन की मंजूरी मांगी। उनके निलंबन का कारण मानसून सत्र के आखिरी दिन “उनके कदाचार, अवमानना, अनियंत्रित और हिंसक व्यवहार और सुरक्षा कर्मियों पर जानबूझकर हमले के अभूतपूर्व कृत्य” थे।

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कार्यवाही में बाधा डालने वाले सांसदों से निपटने के लिए पीठासीन अधिकारियों के पास क्या अधिकार हैं?

सांसदों को संसदीय शिष्टाचार के कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है। उदाहरण के लिए लोकसभा की नियम पुस्तिका यह निर्दिष्ट करती है कि सांसदों को दूसरों के भाषण को बाधित नहीं करना है, शांति बनाए रखना है और बहस के दौरान टिप्पणी करने या टिप्पणी करने से कार्यवाही में बाधा नहीं डालनी है। विरोध के नए रूपों के कारण 1989 में इन नियमों को अद्यतन किया गया। अब सदन में नारेबाजी, तख्तियां दिखाना, विरोध में दस्तावेजों को फाड़ने और सदन में कैसेट या टेप रिकॉर्डर बजाने जैसी चीजों की मनाही है। राज्यसभा में भी ऐसे ही नियम हैं। कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने के लिए, नियम पुस्तिका दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों को कुछ समान शक्तियां भी देती है। प्रत्येक सदन का पीठासीन अधिकारी सांसद को घोर उच्छृंखल आचरण के लिए विधायी कक्ष से हटने का निर्देश दे सकता है। इसके बाद सांसद को शेष दिन सदन की कार्यवाही से अनुपस्थित रहना पड़ता है। पीठासीन अधिकारी सदन के “निरंतर और जानबूझकर काम में बाधा डालने” के लिए एक सांसद का “नाम” भी लगा सकते हैं। ऐसे मामले में आमतौर पर संसदीय कार्य मंत्री सांसद को सदन की सेवा से निलंबित करने का प्रस्ताव पेश करते हैं। निलंबन सत्र के अंत तक चल सकता है।

नियम 256 के तहत हुआ सांसदों का निलंबन

यदि सभापति आवश्यक समझे तो वह उस सदस्य को निलंबित कर सकता है, जो सभापीठ के अधिकार की अपेक्षा करे या जो बार-बार और जानबूझकर राज्य सभा के कार्य में बाधा डालकर राज्य सभा के नियमों का दुरूपयोग करे। सभापति सदस्य को राज्य सभा की सेवा से ऐसी अवधि तक निलम्बित कर सकता है जबतक कि सत्र का अवसान नहीं होता या सत्र के कुछ दिनों तक भी ये लागू रह सकता है। निलंबन होते ही राज्यसभा सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाना होगा।

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क्या ये निलंबन वापस भी हो सकता है

हां, लेकिन ये भी राज्यसभा के सभापति की मर्जी पर होगा। निलंबित सदस्यों के माफी मांगने पर भी इसे वापस लिया जा सकता है। वैसे निलंबन के खिलाफ प्रस्ताव भी सदन में लाया जा सकता है। अगर ये पास हो गया तो निलंबन खुद ब खुद हट जाएगा।

 पहले कब-कब हुआ निलंबन

पहली घटना 1963 में हुई थी। पहले राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा दोनों सदनों को को संयुक्त रूप से संबोधित करने के दौरान भाषण देने के दौरान कुछ लोकसभा सांसदों ने इसे बाधित किया और फिर वाक आउट कर गए।

1989 में सबसे बड़ी निलंबन कार्रवाई हुई थी। 1989 में राजीव गांधी सरकार के दौरान सांसद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या पर ठक्कर कमीशन की रिपोर्ट को संसद में रखे जाने पर हंगामा कर रहे थे। जिसके बाद विपक्ष के 63 सांसदों को हंगामा करने पर निलंबित किया गया था। 

2001 में लोकसभा के नियम में संशोधन कर अध्यक्ष को एक अतिरिक्त शक्ति प्रदान की गई। एक नया नियम, 374A, अध्यक्ष को सदन के कामकाज को बाधित करने के लिए अधिकतम पांच दिनों के लिए एक सांसद को स्वचालित रूप से निलंबित करने का अधिकार देता है। 2015 में, स्पीकर सुमित्रा महाजन ने 25 कांग्रेस सांसदों को निलंबित करने के लिए इस नियम का इस्तेमाल किया।

अगस्त 2013 में मानसून सत्र के दौरान कार्यवाही में रुकावट पैदा करने के लिए 12 सांसदों को निलंबित किया था। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने नियम 374 ए के तहत सांसदों को पांच दिन के लिए निलंबित कर दिया था। 

फरवरी 2014 में लोकसभा के शीतकाल सत्र में 17 सांसदों को 374 (ए) के तहत निलंबित किया गया था।

अगस्त 2015 में कांग्रेस के 25 सदस्यों को काली पट्टी बांधने एवं कार्यवाही बाधित करने पर निलंबित किया था। 

मार्च 2020 में कांग्रेस के सात सांसदों को निलंबित किया गया।

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