दशहरा विशेष—बैजनाथ में न होगा लंका दहन, न ही जलेगा रावण का पुतला

दशहरा विशेष---बैजनाथ में  न होगा लंका दहन, न ही जलेगा रावण का पुतला
बैजनाथ। सुनने में भले ही कुछ अटपटा लगे। लेकिन यह सच है कि पूरा देश जहां  विजयदशमी के हर्षोल्लास में डूब रहा होगा, वहीं हमारे ही देश में एक ऐसा स्थान भी है। जहां न तो लंका दहन होगा व न ही रावण के पुतले जलाये जायेंगे। हम बात कर रहे हैं, हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के बैजनाथ कस्बे की है। जहां  लोग सदियों से रावण को बुराई का प्रतीक नहीं मानते व यहां दशहरा नहीं मनाया जाता।
 

इसे भी पढ़ें: राज्यपाल और मुख्यमंत्री ने दशहरा उत्सव पर प्रदेशवासियों को बधाई दी

 
यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। आज भी इसे लोग निभा रहे हैं।  रावण को स्थानीय लोग पूरी श्रद्धा से याद करते हैं।  जिसके चलते यहां रावण का पुतला जलाना निषेध है। लोगों का मानना हैं कि पुतला जलाने से भगवान शिव नाराज हो जाते हैं। 
 बताया जाता है कि इस जगह  लंकापति रावण ने भगवान शिव जी की तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। मान्यता है कि यहां पर भगवान शिव के जिस शिवलिंग की स्थापना हुई है, उसे रावण यहां लाया था। यहां भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने अपने सिर को भी अर्पित कर दिया था। हिमालय पर सदियों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने रावण को दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा था।
 
 
 
रावण की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे दशानन (दस सिर) का आशीर्वाद दिया था, तब शिव ने कहा था कि शिवलिंग को ले जाओ मगर इसे धरती पर जहां रखोगे वहां पर यह भूमि में समा जाएगा और वहां पर शिव मंदिर बन जाएगा। रावण शिवलिंग को लेकर जब बैजनाथ के करीब से गुजर रहे थे तब उन्हें लघु शंका के कारण यहां पर आराम कर रहे एक राहगीर को शिवलिंग पकड़ा और कहा कि इसे धरती में न रखना और वह लघु शंका से मुक्त होकर वापस ले लेंगे। रावण लघुशंका के लिए गए और राहगीर उस शिवलिंग के भार को सह न सका और उसे धरती पर रख दिया जहां पर आज बैजनाथ शिव मंदिर है और यहां पर अब हजारों श्रद्धालु शिव भक्ति करते हैं।
 

इसे भी पढ़ें: कोरोना में भी नहीं रुकने दिया विकास, किए 4000 करोड़ के उद्घाटन-शिलान्यास: जयराम ठाकुर

 
वहीं मंदिर के निकट ही एक अन्य शिव मंदिर है जहां पर एक चट्टान है जिसे रावण का पैर माना जाता है। लोग यहां पर रावण व शिव दोनों की भक्ति करते हैं। यहां की मान्यता है कि काफी वर्षों पहले किसी ने रावण को जलाने दशहरा मनाने का प्रयास किया था पर उसके घर में अनहोनी घटना घटित हो गई उसके बाद यहां पर कभी किसी ने रावण को जलाने की हिम्मत नहीं जुटाई। 
 

इसे भी पढ़ें: निर्वाचन विभाग ने पुलिस अधिकारियों के साथ की बैठक, चुनाव प्रक्रिया के दौरान कोविड-19 से संबंधित मानदंडों की अक्षरशः अनुपालना सुनिश्चित करने पर बल

 
वहीं इस बैजनाथ शहर में कोई भी दुकान एैसी नहीं हैं जहां पर सोने के गहने खरीदे या बेचे जाते हों। न ही कोई स्वर्णकार है। इसके लिए कहावत है कि पार्वती ने जहां पर शिव अर्धनारीश्वर के रूप में होंगे वहां पर कोई भी सुनार का सोने का काम नहीं कर सकते, पार्वती रावण की लंका में हुए एक आयोजन को लेकर नाराज थीं जिस कारण यहां बैजनाथ में भी अगर कोई सुनार का काम खोलता है उसे फायदे के बजाए किसी अनहोनी घटना का शिकार होना पड़ता है। लोग मानते हैं कि रावण अपने निजी जीवन में बुरा रहा हो, लेकिन इस शहर में भगवान शिव की स्थापना करने और शिवभक्त होने के नाते उसका पुतला नहीं जलाया जाना चाहिए। दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है। भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरान्त महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *