भाजपा के लिये फतेहपुर चुनाव में मुसीबत से कम नहीं हैं राजन सुशांत

भाजपा के लिये फतेहपुर चुनाव में मुसीबत से कम नहीं हैं राजन सुशांत
कांगड़ा, 05 अगस्त    हिमाचल प्रदेश में मंडी लोकसभा चुनाव क्षेत्र के अलावा कांगड़ा जिला के फतेहपुर सोलन जिला के अर्की व शिमला में जुब्बल कोटखाई विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव होने जा रहे हैं। चुनावों को लेकर प्रदेश का सियासी महौल गरमाया है। लेकिन चुनावी महौल में राजन सुशांत का चुनाव मैदान में उतरना सत्तारूढ़ के गले की फांस बन गया है।
हिमाचल की राजनिती में राजन सुशांत की पहचान एक जुझारू नेता के तौर पर होती रही है । बेरोजगारी व पौंग डैम विस्थापितों की लड़ाई उन्होंने बेबाक तरीके से लड़ते हुये सत्ता के आगे आवाज बुलंद की। देहरी कालेज को लेकर संघर्ष में तो उन्होंने लाठियां तक खाई थीं। जिसके चलते सुशांत इलाके में खासे लोकप्रिय नेता बने ।
 
राजन सुशांत जिला कांगड़ा के फतेहपुर हल्के से चार बार विधायक व कांगडा संसदीय क्षेत्र से एक बार सांसद रहे हैं।  इस बार फिर से सुशांत उपचुनावों में मैदान में उतर गये हैं। यह सीट कांग्रेस विधायक सुजान सिंह पठानिया के निधन से खाली हुई है । उनके मैदान में उतरने से सत्तारूढ़ दल भाजपा परेशानी में है यही वजह है कि भाजपा अभी तक अपना प्रत्यशी घोषित करने से कतरा रही है। भाजपा सरकार के लिये भले ही होने वाले उपचुनावों के नतीजों का कोई खास फर्क न पड़ता हो लेकिन नतीजे 2022 के चुनावों व सीएम जय राम ठाकुर के राजनैतिक भविष्य के लिये खास मायने रखते हैं ।
राजन सुशांत लंबे अरसे तक भाजपा में रहे हैं लेकिन मतभेदों के चलते वह भाजपा को रास नहीं आये व पार्टी ने उन्हें निकाल दिया। उसके बाद उन्होंने आम आदमी पार्टी से होते हुये ,अब अपना क्षेत्रिय दल ‘‘हमारी पार्टी, हिमाचल पार्टी’’ का गठन किया है। जिसे प्रदेश के तीसरे मोर्चे के तौर पर पहचान मिली है। उनकी पार्टी ने हालांकि अगले विधानसभा चुनावों में मैदान में उतरने का एलान कर रखा है। लेकिन इससे एक साल पहले ही सुशांत के चुनाव मैदान में उतरने से यहां चुनावी मुकाबला रोचक हो गया है। 
पिछले विधानसभा चुनावों में भी भाजपा के बागी बलदेव ठाकुर ने भाजपा प्रत्याशी कृपाल परमार को हराने में अहम भूमिका निभाई थी । जिससे सुजान सिंह पठानिया चुनाव जीते। बलदेव ठाकुर को 2012 में भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा था । लेकिन तब राजन सुशांत की पत्नी सुधा सुशांत के मैदान में आने से चुनाव हार गये ।  2017 में उन्होंने टिकट न मिलने पर भाजपा से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लडा व फिर चुनाव हारे । राजन सुशांत यहां की राजनिति में एक फैक्टर रहे हैं । भाजपा के वोट बैंक पर उनका प्रभाव रहा है ।   इस बार तीन महीने से वह लगातार चुनाव अभियान में डटे हैं । व अपनी शैली के मुताबिक पुरानी पैंशन बहाली पर उनका धरना यहां अनवरत जारी है ।  उनके चुनाव अभियान में इस बार उनके पुत्र धैर्य सुशांत जो कि पेशे से हाईकोर्ट में वकील हैं, सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं ।
अपने भाषणों में राजन सुशांत भाजपा सरकार को घेरते हुये अपने इलाके से हो रहे भेदभाव को उठा रहे हैं ।  उनकी सभाओं में भीड जुट रही है जिसे देखकर लग रहा है कि चुनाव अभी एकतरफा ही है चूंकि न तो भाजपा न ही कांग्रेस अपने प्रत्याशी अभी तक तय कर पाई है चुनाव यहां सितंबर में होंगे ।

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