दुर्गा मंदिर प्रांगण में गुरु दक्षिणा पर्व मनाया गया

- भगवा ध्वज हिंदुत्व के पुनर्जागरण का प्रतीक
झारखण्ड/पाकुड़, अमड़ापाड़ा : गुरू पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरूजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने, बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक किसी व्यक्ति या ग्रंथ की जगह भगवा ध्वज को अपना मार्गदर्शक और गुरु मानते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष व्यास पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) के दिन संघ-स्थान पर एकत्र होकर सभी स्वयंसेवक भगवा ध्वज का विधिवत पूजन करते हैं।
- भगवा ध्वज की पूजा क्यों
सन 1925 में अपनी स्थापना के तीन साल बाद संघ ने सन् 1928 में पहली बार गुरुपूजा का आयोजन किया था। तब से यह परंपरा अबाध रूप से जारी है और भगवा ध्वज का स्थान संघ में सर्वोच्च बना हुआ है।
भगवा ध्वज को ही संघ ने अपनी व्यवस्था में सर्वोच्च स्थान क्यों दिया? यह प्रश्न बहुतों के लिए पहेली बना हुआ है। भारत और कई दूसरे देशों में ऐसे अनेक धार्मिक-आध्यात्मिक संगठन हैं, जिनके संस्थापकों को गुरु मानकर उनका पूजन करने की परंपरा है। भक्ति आंदोलन की समृद्ध परंपरा के दौरान और आज भी किसी व्यक्ति को गुरु मानने में कोई कठिनाई नहीं थी। इस प्रचलित परिपाटी से हटकर संघ में डॉ. हेडगेवार की जगह भगवा ध्वज को गुरु मानने का विचार विश्व के समकालीन इतिहास की अनूठी पहल है। जो संगठन दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन गया है, जिसका सर्वोच्च पद एक ध्वज को प्राप्त है।
ज़िले के अमड़ापाड़ा प्रखण्ड के दुर्गा मंदिर प्रांगण में गुरु दक्षिणा पर्व का आयोजन किया गया। मौके पर हिन्दू समाज के लोगों के साथ बच्चों ने भी भाग लिया। कार्यक्रम में ध्वजारोहण उपरांत दक्षिणा कार्यक्रम हुआ और अंत मे “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे” प्रार्थना के उपरांत कार्यक्रम का समापन हुआ।
ज्ञात हो कि हाई स्कूल अमड़ापाड़ा के मैदान में प्रतिदिन सुबह 5:30 बजे से शाखा का आयोजन होता है।
आज के पर्व में मृत्युंजय घोष, विजय भगत, संजय गुप्ता, दिलीप भगत, धीरज भगत, नमन भगत, आयुष, आयुषी, तितली सहित दर्जनों ग्रामीण उपस्थित थे।
- ऐतिहासिक है भगवा की कहानी
सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोविंद सिंह ने जब हिंदू धर्म की रक्षा के लिए हजारों सिख योद्धाओं की फौज का नेतृत्व किया, तब उन्होंने केसरिया झंडे का उपयोग किया। यह ध्वज हिंदुत्व के पुनर्जागरण का प्रतीक है। इस झंडे से प्रेरणा लेते हुए महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल में सिख सैनिकों ने अफगानिस्तान के काबुल-कंधार तक को फतह कर लिया था।