Paush Navami Vrat: पौष नवमी व्रत से होते हैं सभी कष्ट दूर
आज है पौष नवमी, यह पौष माह का नौवां दिन होता है, जो शुक्ल पक्ष (उजली) या कृष्ण पक्ष (काली) दोनों में पड़ती है। पौष नवमी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व होता है जिस दिन सूर्य पूजा, दान-पुण्य और स्नान का विशेष महत्व होता है तो आइए हम आपको पौष नवमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
पौष नवमी का अर्थ और महत्व
हिंदू पंचांग के अनुसार दसवां महीना होता है। यह महीना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित है। इस साल पौष माह का आरंभ दिन शुक्रवार, 5 दिसंबर 2025 से हुआ है। यह माह बहुत शुभ फल देने वाला है, लेकिन कुछ ऐसे नियम और वर्जित काम हैं जिन्हें इस महीने के दौरान नहीं करना चाहिए। पौष माह में नवमी तिथि का खास महत्व है एवं इस किए गए दान बहुत लाभदायी होता है। इस साल पौष नवमी 29 दिसम्बर को पड़ रही है। हिन्दू पंचांग के अनुसार नवमी तिथि कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष दोनों में होती है और देवी दुर्गा से संबंधित मानी जाती है, मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप से विशेष प्रकार से सम्बन्धित है। इस मास में सूर्य देव की उपासना, स्नान, दान, और पितृ तर्पण से शुभ फल मिलते हैं, धन-धान्य में वृद्धि होती है और ग्रह दोष शांत होते हैं।
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पौष मास का नाम है धनुर्मास
धनुर्मास पौष मास को धनुर्मास भी कहते हैं क्योंकि इस दौरान सूर्य धनु राशि में रहते हैं। पौष नवमी एक शुभ तिथि है जो पौष मास में आती है और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिसमें खासकर भगवान सूर्य और देवी दुर्गा की पूजा की जाती है।
पौष नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा
पंडितों के अनुसार पौष नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा एक गरीब ब्राह्मण कन्या और पीपल वृक्ष की है। एक गांव में एक निर्धन ब्राह्मण अपनी गुणवान बेटी के साथ रहता था, लेकिन कन्या के विवाह में कई बाधाएं आ रही थीं। एक दिन एक साधु उनके घर आए, सेवा से प्रसन्न होकर साधु ने कन्या को बताया कि पास के एक घर में जाकर प्रतिदिन सेवा करे, तो बाधाएं दूर होंगी। इस तरह कन्या ने निःस्वार्थ सेवा और पीपल की परिक्रमा की, जिससे विवाह की बाधाएं दूर हुईं, कन्या ने निस्वार्थ भाव से उस घर की साफ-सफाई की, वहां की महिला ने जब यह देखा, तो प्रसन्न होकर कन्या को जल्द विवाह का आशीर्वाद दिया। लेकिन कुछ समय बाद उसके पति की मृत्यु हो गई। दुखी महिला ने अपने आंगन के पीपल वृक्ष की 108 परिक्रमाएं कीं और भगवान विष्णु से प्रार्थना की। संयोग से वह तिथि पौष नवमी थी। इस पूजा एवं प्रार्थना से महिला के पति को पुनर्जीवन मिला, जिससे यह व्रत सभी कष्टों को दूर करने और सुख-समृद्धि लाने वाला माना जाता है। इस प्रकार भगवान की कृपा से महिला के पति पुनर्जीवित हो उठे और कन्या का विवाह भी संपन्न हो गया. तभी से पौष नवमी पर पीपल की पूजा और परिक्रमा को अत्यंत फलदायी माना जाता है।
पौष महीने में इन बातों का रखें ध्यान
शास्त्रों के अनुसार पौष महीने में सूर्य धनु राशि में प्रवेश करते हैं, जिसे धनु संक्रांति कहा जाता है। इस अवधि को खरमास भी कहते हैं। ऐसे में इस पूरे महीने में विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, और नए व्यवसाय की शुरुआत जैसे सभी मांगलिक काम वर्जित माने जाते हैं। खरमास में किए गए शुभ कार्यों का फल अच्छा नहीं मिलता है। इस महीने में प्रतिदिन शरीर की तेल मालिश करने से बचना चाहिए। इस माह तिल का दान करना भी बहुत शुभ माना जाता है। इस दौरान नए अनाज का सेवन बिना देवताओं को भोग लगाए नहीं करना चाहिए। इस माह अन्न का दान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है। पौष महीने में ठंडी चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए। इस माह गुड़, अदरक, लहसुन और तिल का सेवन करना लाभकारी होता है। इस माह में प्रतिदिन सूर्य देव को अर्घ्य देना चाहिए और पितरों का तर्पण करना चाहिए। इस दौरान सूर्य को जल चढ़ाना चाहिए और सूर्य देव के वैदिक मंत्रों का जप करना चाहिए।
पौष नवमी तिथि पर करें इन मंत्रों का जाप
– ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः।।
– ॐ घृणिः सूर्य आदित्यः क्लीं ॐ।।
– ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।।
पौष मास से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं भी खास हैं
पौष विक्रम संवत का दसवां महीना कहा जाता है। इस मास में हेमंत ऋतु होने से ठंड अधिक होती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में भग नाम सूर्य की उपासना करना चाहिए। पंडितों के अनुसार पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है। आदित्य पुराण के अनुसार पौष माह के हर रविवार को तांबे के बर्तन में शुद्ध जल, लाल चंदन और लाल रंग के फूल डालकर सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए तथा विष्णवे नम: मंत्र का जप करना चाहिए। इस मास के प्रति रविवार को व्रत रखकर सूर्य को तिल-चावल की खिचड़ी का भोग लगाने से मनुष्य तेजस्वी बनता है।
जानें पौष मास का महत्व
पंडितों के अनुसार पौष मास भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को बहुत प्रिय है। इस महीने में इनकी पूजा करने से विशेष फल मिलता है। इस दिन पवित्र नदियों में अन्न, स्नान, ऊनी वस्त्र, तिल और गुड़ का दान करने से पापों का नाश होता है। जिन लोगों को पितृ दोष है, उन्हें इस दिन पितरों के लिए तर्पण और श्राद्ध कर्म करना चाहिए। सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के कारण पौष मास में विवाह जैसे शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं, लेकिन यह महीना पूजा-पाठ और दान के लिए शुभ होता है।
– प्रज्ञा पाण्डेय
