जानें भारत में कैसे आता है मॉनसून? समझें बारिश का पूरा विज्ञान

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गर्मी की तपिश से बेहाल देश बेसब्री से जिसका इंतजार करते हैं, वह है मॉनसून की पहली फुहार। यह न केवल झुलसाती गर्मी से राहत दिलाती है, बल्कि हमारी कृषि अर्थव्यवस्था की जीवनरेखा भी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह मॉनसून आखिर आता कैसे है?

 

बादलों का यह विशाल झुंड हजारों किलोमीटर की यात्रा करके हमारे देश तक कैसे पहुंचता है और पूरे भारत को भिगो देता है? आइए, आज इस बारिश के पूरे विज्ञान को आंकड़ों और रोचक तथ्यों के साथ समझते हैं।

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मॉनसून: एक मौसमी पवन
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि मॉनसून कोई बादल या पानी की धारा नहीं है, बल्कि यह एक मौसमी पवन है। ‘मॉनसून’ शब्द अरबी भाषा के शब्द ‘मौसम’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ऋतु। ये ऐसी हवाएं होती हैं जो साल के एक निश्चित समय में एक निश्चित दिशा में बहती हैं और फिर मौसम बदलने पर अपनी दिशा बदल लेती हैं। भारत में, ग्रीष्म ऋतु (जून से सितंबर) में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर बहने वाली हवाओं को दक्षिण-पश्चिम मॉनसून कहा जाता है, जो हमारे लिए भरपूर बारिश लेकर आती हैं।

 

कैसे बनता है मॉनसून?
मॉनसून बनने की प्रक्रिया में कई भौगोलिक और वायुमंडलीय कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:

1. तापमान का अंतर: गर्मी के महीनों में, मध्य एशिया और उत्तरी भारत के विशाल भूभाग अत्यधिक गर्म हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, मई और जून के महीनों में राजस्थान और आसपास के क्षेत्रों में तापमान अक्सर 45 डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर चला जाता है। इसके विपरीत, हिन्द महासागर अपेक्षाकृत ठंडा रहता है। तापमान में यह भारी अंतर वायुदाब में अंतर पैदा करता है। गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है, जिससे इन क्षेत्रों में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। वहीं, ठंडे समुद्र के ऊपर उच्च वायुदाब बना रहता है।

2. हवा का प्रवाह: हवा हमेशा उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर बहती है। इसी कारण, हिन्द महासागर से नमी से भरी हवाएं भारतीय उपमहाद्वीप की ओर आकर्षित होती हैं। ये हवाएं दक्षिण-पश्चिम दिशा से चलती हैं, इसीलिए इन्हें दक्षिण-पश्चिम मॉनसून कहा जाता है।

3. पृथ्वी का घूमना (कोरिऑलिस प्रभाव): पृथ्वी के घूमने के कारण हवाएं सीधी न बहकर थोड़ी विक्षेपित हो जाती हैं। उत्तरी गोलार्ध में ये हवाएं अपनी दाहिनी ओर मुड़ जाती हैं। इसी प्रभाव के कारण, भूमध्य रेखा को पार करने के बाद ये दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक हवाएं भारत की ओर बढ़ते हुए दक्षिण-पश्चिम दिशा ले लेती हैं।

4. हिमालय पर्वत की भूमिका: विशाल हिमालय पर्वत श्रृंखला भारतीय मॉनसून को एक महत्वपूर्ण दिशा प्रदान करती है। जब नमी से भरी हवाएं इस पर्वत श्रृंखला से टकराती हैं, तो वे ऊपर उठने पर ठंडी होती हैं और संघनित होकर भारी वर्षा करती हैं। हिमालय, एक अवरोधक की तरह काम करता है और इन हवाओं को उत्तर की ओर जाने से रोकता है, जिससे पूरे उत्तर भारत में अच्छी बारिश होती है।

 

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भारत में मॉनसून का आगमन:
भारत में मॉनसून आमतौर पर जून के पहले सप्ताह में केरल के तट से टकराता है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के आंकड़ों के अनुसार, केरल में मॉनसून की शुरुआत की सामान्य तिथि 1 जून है, जिसमें लगभग एक सप्ताह का विचलन संभव है। इसके बाद, मॉनसून धीरे-धीरे उत्तर की ओर बढ़ता है।

जून: केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु के कुछ हिस्से, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में मॉनसून सक्रिय हो जाता है।

जुलाई: मॉनसून मध्य भारत, गुजरात, राजस्थान के कुछ हिस्से और उत्तर भारत के मैदानी इलाकों तक पहुंच जाता है। जुलाई भारत में सबसे अधिक वर्षा वाला महीना होता है।

अगस्त: मॉनसून पूरे भारत में फैल जाता है, हालांकि कुछ शुष्क क्षेत्र जैसे पश्चिमी राजस्थान में अपेक्षाकृत कम वर्षा होती है।

सितंबर: सितंबर के मध्य से मॉनसून कमजोर पड़ने लगता है और धीरे-धीरे दक्षिण की ओर लौटने लगता है, जिसे ‘मॉनसून का प्रत्यावर्तन’ (Retreat of Monsoon) कहा जाता है।

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बारिश का विज्ञान:
जब नमी से भरी मॉनसून हवाएं ऊपर उठती हैं, तो वायुमंडल में ऊंचाई के साथ तापमान कम होने के कारण जलवाष्प ठंडी होकर छोटी-छोटी पानी की बूंदों या बर्फ के कणों में बदल जाती है। इस प्रक्रिया को संघनन (Condensation) कहते हैं। ये छोटी बूंदें आपस में मिलकर बड़ी बूंदें बनाती हैं और जब ये इतनी भारी हो जाती हैं कि हवा में टिक नहीं पातीं, तो वर्षा के रूप में नीचे गिरती हैं।

 

 

पहाड़ों से टकराकर ऊपर उठने वाली हवाएं पर्वतीय वर्षा (Orographic Rainfall) कराती हैं, जो पश्चिमी घाट और हिमालय के क्षेत्रों में भारी वर्षा का मुख्य कारण है। वहीं, जब गर्म और ठंडी हवाएं आपस में मिलती हैं, तो सामने की वर्षा (Frontal Rainfall) होती है।

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