‘ब्रेस्ट पकड़ना, नाड़ा तोड़ना रेप की कोशिश नहीं’, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया स्वतः संज्ञान

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नाबालिग लड़की के साथ रेप की कोशिश से जुड़े एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट न्यायालय के हाल ही में दिए विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया।

 

अब इस मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी। कानूनी विशेषज्ञों ने बलात्कार के आरोप की परिभाषा पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी की निंदा की थी और न्यायाधीशों से संयम बरतने को कहा था।

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कानून विशेषज्ञों ने की थी निंदा

कानूनी विशेषज्ञों ने बलात्कार के आरोप की परिभाषा पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी की निंदा की थी और न्यायाधीशों से संयम बरतने को कहा था। विशेषज्ञों ने कहा था कि ऐसे बयानों के कारण न्यायपालिका में लोगों के विश्वास में कमी आती है।

 

आज होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस विवादास्पद फैसले का स्वत: संज्ञान लिया है जिसमें कहा गया था कि केवल स्तन पकड़ना और ‘पजामा’ का नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं माना जा सकता। न्यायमूर्ति बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ आज मामले की सुनवाई करेगी।

 

 

 

क्या फैसला सुनाया था 

हाईकोर्ट ने 17 मार्च को फैसला सुनाया था कि केवल स्तन पकड़ना और ‘पजामा’ का नाड़ा तोड़ना बलात्कार का अपराध नहीं है, ऐसा अपराध किसी महिला के खिलाफ हमला या आपराधिक बल के इस्तेमाल के दायरे में आता है, जिसका उद्देश्य उसे निर्वस्त्र करना या नग्न होने के लिए मजबूर करना है।

 

यह आदेश न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने उन दो व्यक्तियों की एक समीक्षा याचिका पर पारित किया था, जिन्होंने कासगंज के एक विशेष न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया। विशेष न्यायाधीश ने याचिकाकर्ताओं को अन्य धाराओं के अलावा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 के तहत तलब किया था।

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नाबालिग के साथ उत्पीड़न 

हाईकोर्ट का यह फैसला पवन और आकाश नाम के दो लोगों से जुड़े एक मामले पर आया था। जिन्होंने कथित तौर पर अपनी मां के साथ चल रही नाबालिग के स्तनों को पकड़ा, उसके पायजामे का नाड़ा फाड़ दिया और उसे एक पुलिया के नीचे खींचने का की कोशिश की। शुरुआत में उन पर रेप और यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे। हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि उनके कृत्य रेप या रेप के प्रयास के रूप में योग्य नहीं थे बल्कि इसकी बजाय वे गंभीर यौन उत्पीड़न के कमतर आरोप के अंतर्गत आते हैं, जो दंडनीय है।

इनपुट एजेंसियां

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