बलूचिस्तान से लेकर POK में उथल-पुथल शुरू, क्या पाकिस्तान के होंगे टुकड़े?

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आज हम एक ऐसे दौर में खड़े हैं, जहां दक्षिण एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। बलूचिस्तान से लेकर पाक अधिकृत कश्मीर (POK) तक अस्थिरता और उथल-पुथल की खबरें सुर्खियों में हैं। भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल ही में लंदन के चैथम हाउस में एक साहसिक बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा कि POK भारत का हिस्सा है और इसे वापस लेने के बाद जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापित हो जाएगी। क्या यह बयान केवल कूटनीतिक आक्रामकता है या इसके पीछे ठोस ऐतिहासिक दावा और वर्तमान संदर्भ छिपा है?

 

आइए, इस मुद्दे को ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और नवीनतम घटनाओं के आधार पर विश्लेषण करें।

 

 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 

POK और बलूचिस्तान का उद्गम : भारत और पाकिस्तान का बंटवारा 1947 में हुआ, लेकिन जम्मू-कश्मीर और बलूचिस्तान के क्षेत्रों का भविष्य उस समय अनिश्चित था। जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने शुरू में स्वतंत्र रहने का फैसला किया था। लेकिन, 22 अक्टूबर 1947 को पाकिस्तानी सेना द्वारा समर्थित कबायली हमलावरों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। इसके जवाब में, 26 अक्टूबर को महाराजा ने भारत के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद भारतीय सेना ने हस्तक्षेप किया। युद्धविराम के बाद नियंत्रण रेखा (LoC) बनाई गई, जिसके परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर का लगभग 13,297 वर्ग किलोमीटर हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में चला गया। इसे भारत ‘पाक अधिकृत कश्मीर’ कहता है, जबकि पाकिस्तान इसे ‘आजाद कश्मीर’ और ‘गिलगित-बाल्टिस्तान’ के रूप में दो प्रशासनिक इकाइयों में बांटकर संदर्भित करता है।

 

 

दूसरी ओर, बलूचिस्तान का इतिहास भी औपनिवेशिक और जबरन अधिग्रहण से भरा है। 1947 में आजादी के समय बलूचिस्तान एक स्वतंत्र रियासत थी, जिसके शासक खान ऑफ कालात ने स्वतंत्रता की मांग की थी। लेकिन 27 मार्च 1948 को पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान पर कब्जा कर लिया। तब से बलूच राष्ट्रवादी स्वायत्तता और स्वतंत्रता की मांग करते रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप 5 बड़े विद्रोह हुए हैं। बलूचिस्तान और POK दोनों ही क्षेत्रों में पाकिस्तान का नियंत्रण विवादित रहा है और दोनों ही जगह स्थानीय आबादी में असंतोष व्याप्त है।

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वर्तमान संदर्भ 

बलूचिस्तान और POK में उथल-पुथल के मायने : हाल के महीनों में बलूचिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे संगठनों ने पाकिस्तानी सेना और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से जुड़े ठिकानों पर हमले तेज कर दिए हैं। ग्वादर बंदरगाह और अन्य परियोजनाओं पर हमले इस बात का संकेत हैं कि बलूच जनता अपने संसाधनों के शोषण और अधिकारों के हनन से तंग आ चुकी है। दूसरी ओर, POK में भी हालात शांत नहीं हैं। गिलगित-बाल्टिस्तान में बिजली संकट, आर्थिक उपेक्षा और राजनीतिक अधिकारों की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं। मुजफ्फराबाद में भी स्थानीय लोग पाकिस्तानी प्रशासन के खिलाफ सड़कों पर उतर रहे हैं।

 

 

 

भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने 7 मार्च 2025 को एक पाकिस्तानी पत्रकार के सवाल पर लंदन में कहा था- POK लेते ही जम्मू-कश्मीर में शांति हो जाएगी। इस बयान पर पाकिस्तान ने तीखी प्रतिक्रिया दी। पाक विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता शफकत अली खान ने इसे ‘आधारहीन दावा’ करार देते हुए कहा कि भारत को जम्मू-कश्मीर के उस हिस्से को छोड़ देना चाहिए, जिस पर उसने ’77 साल से कब्जा’ किया है। लेकिन यह प्रतिक्रिया केवल कूटनीतिक शोर से ज्यादा कुछ नहीं लगती, क्योंकि POK में बढ़ती अस्थिरता और बलूचिस्तान में विद्रोह पाकिस्तान की कमजोर स्थिति को उजागर करते हैं।

 

 

जयशंकर की बात का विश्लेषण : क्या यह संभव है?

जयशंकर का बयान भारत की लंबे समय से चली आ रही नीति का हिस्सा है। 22 फरवरी 1994 को भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से संकल्प पारित किया था कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और पाकिस्तान को POK खाली करना चाहिए। अनुच्छेद 370 हटने के बाद भारत ने POK और गिलगित-बाल्टिस्तान को अपने नक्शे में स्पष्ट रूप से शामिल किया है। मौसम रिपोर्ट में इन क्षेत्रों का जिक्र और विधानसभा में 24 सीटें रिजर्व रखना इस दावे को मजबूत करता है।

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लेकिन क्या POK को वापस लेना व्यावहारिक है? इसके लिए तीन पहलुओं पर विचार करना जरूरी है :

सैन्य संभावना : भारत की सैन्य ताकत पाकिस्तान से कहीं अधिक है, लेकिन POK पर सैन्य कार्रवाई में अंतरराष्ट्रीय दबाव और चीन की भूमिका बाधा बन सकती है। 1963 में पाकिस्तान ने POK का शक्सगाम क्षेत्र चीन को सौंप दिया था और CPEC गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर गुजरता है। चीन इस क्षेत्र में अपनी रणनीतिक मौजूदगी को खतरे में नहीं डालेगा।

 

कूटनीतिक रास्ता : संयुक्त राष्ट्र में भारत ने बार-बार POK को अपना हिस्सा बताया है। 29 सितंबर 2024 को जयशंकर ने UNGA में कहा था कि पाकिस्तान अपने कर्मों का फल भोग रहा है। अगर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का समर्थन मिले, तो दबाव के जरिए यह संभव हो सकता है।

 

आंतरिक अस्थिरता : बलूचिस्तान और POK में बढ़ती उथल-पुथल पाकिस्तान को कमजोर कर रही है। अगर यह स्थिति बनी रही, तो भारत के लिए मौका बन सकता है।

 

 

पाक अधिकृत कश्मीर लेना सपना या सच्चाई?

जयशंकर का बयान केवल भावनात्मक अपील नहीं, बल्कि एक रणनीतिक संदेश है। ऐतिहासिक रूप से POK भारत का हिस्सा रहा है, और वर्तमान में पाकिस्तान की आर्थिक और राजनीतिक कमजोरी इसे हासिल करने का अवसर दे सकती है। हालांकि, सैन्य टकराव से बचते हुए कूटनीति और आंतरिक दबाव के जरिए ही यह संभव होगा। बलूचिस्तान में विद्रोह और POK में असंतोष इस बात के संकेत हैं कि पाकिस्तान का इन क्षेत्रों पर नियंत्रण ढीला पड़ रहा है। क्या जयशंकर की बात सच होगी? यह समय और भारत की रणनीति पर निर्भर करता है। लेकिन इतना तय है कि यह मुद्दा अब वैश्विक मंच पर और मजबूती से उठेगा।

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