हिरासत में रखे व्यक्ति को ₹50 हजार मुआवजे का आदेश, जानें क्या है मामला
- दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस को करीब आधे घंटे तक हवालात में अवैध रूप से हिरासत में रखे गए एक व्यक्ति को 50000 रुपए का मुआवजा देने का फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि जिस तरह से अधिकारियों ने नागरिकों के साथ व्यवहार किया, उससे वह क्षुब्ध है।
न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने एक सार्थक संदेश देने के लिए निर्देश दिया कि मुआवजा दोषी पुलिस अधिकारियों के वेतन से वसूला जाएगा। अदालत ने कहा कि अधिकारियों ने याचिकाकर्ता की स्वतंत्रता या कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना मनमाने तरीके से काम किया क्योंकि याचिकाकर्ता को अकारण घटनास्थल से उठा लिया गया और हवालात के अंदर डाल दिया गया।
अदालत ने पांच अक्टूबर के अपने आदेश में कहा, याचिकाकर्ता द्वारा हवालात में बिताया गया समय, चाहे थोड़ी देर के लिए भी हो, उन पुलिस अधिकारियों को बरी नहीं कर सकता, जिन्होंने कानून द्वारा स्थापित उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना याचिकाकर्ता को उसकी स्वतंत्रता से वंचित कर दिया।
न्यायाधीश ने कहा, इस अदालत का मानना है कि अधिकारियों को एक सार्थक संदेश भेजा जाना चाहिए कि पुलिस अधिकारी स्वयं कानून नहीं बन सकते। इस मामले के तथ्यों को देखें तो, भले ही याचिकाकर्ता की अवैध हिरासत केवल लगभग आधे घंटे के लिए थी, यह अदालत याचिकाकर्ता को 50,000 रुपए का मुआवजा देने के लिए इच्छुक है, जिसे प्रतिवादी नंबर चार और पांच के वेतन से वसूल किया जाएगा।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि पिछले साल सितंबर में एक महिला और एक सब्जी विक्रेता के बीच लड़ाई की शिकायत के बाद उसे स्थानीय पुलिस द्वारा बिना किसी औपचारिक गिरफ्तारी के अवैध रूप से हवालात में रखा गया था। उन्होंने अपनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उल्लंघन के लिए मुआवजे की मांग की।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसके खिलाफ प्राथमिकी के बिना ही मौके से उठा लिया गया और हवालात में डाल दिया गया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के उसके अधिकार के खिलाफ था।
न्यायाधीश ने कहा, यह अदालत इस तथ्य से बहुत क्षुब्ध है कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार भी नहीं किया गया था। उसे बस मौके से उठाया गया, थाने लाया गया और बिना किसी कारण के हवालात के अंदर डाल दिया गया। पुलिस अधिकारियों ने मनमाने तरीके से एक नागरिक के संवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर कार्रवाई की, जो भयावह है।
न्यायाधीश ने कहा, यह अदालत पुलिस अधिकारियों द्वारा नागरिकों के साथ किए जा रहे व्यवहार से व्यथित है, जो ऐसा व्यवहार करते हैं, मानो वे कानून से ऊपर हों। अदालत ने कहा कि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों की निंदा ही पर्याप्त नहीं है क्योंकि इससे पुलिस अधिकारियों के करियर पर कोई प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है, इसलिए यह पर्याप्त दंडात्मक कार्रवाई नहीं होगी।
(भाषा)