Ashadh Vinayak Chaturthi 2023: आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत से होते हैं सभी संकट दूर
आज आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत है। विनायक चतुर्थी गजानन के विनायक रूप की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि प्राप्ति होती है, तो आइए हम आपको आषाढ़ विनायक चतुर्थी की व्रत-विधि तथा कथा के बारे में बताते हैं।
जानें आषाढ़ विनायक चतुर्थी के बारे में
आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत की विशेषता यह है कि यह व्रत हर महीने में दो बार आता है। महीने में दो चतुर्थी आती हैं ऐसे में दोनों तिथियां ही विघ्नहर्ता भगवान गणेश को समर्पित मानी जाती हैं।
आषाढ़ विनायक चतुर्थी का महत्व
पंडितों के अनुसार आषाढ़ विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और कार्यों में किसी भी तरह की कोई रुकावट नहीं आती है। इसलिए गणपति महाराज को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है।
इसे भी पढ़ें: Chhind Dham Mandir: अनोखी है छींद धाम वाले दादाजी की महिमा, हनुमान जी पूरी करते हैं भक्तों की मुरादें
विनायक चतुर्थी पर करें ये उपाय
आषाढ़ विनायक चतुर्थी का दिन बहुत खास होता है। पंडितों के अनुसार अगर आप इस दिन गणेश जी को शतावरी चढ़ाते हैं तो इससे व्यक्ति की मानसिक शांति बनी रहती है। गेंदे के फूल की माला को घर के मुख्य द्वार पर बांधने से घर की शांति वापस आती है। साथ ही गणेश जी को अगर चौकोर चांदी का टुकड़ा चढ़ाया जाए तो घर में चल रहा संपत्ति को लेकर विवाह खत्म हो जाता है। किसी भी पढ़ाई में परेशानी हो तो आपको आषाढ़ विनायक चतुर्थी पर ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का जाप 108 बार करना चाहिए। आषाढ़ विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी को 5 इलायची और 5 लौंग चढ़ाए जाने से जीवन में प्रेम बना रहता है। वैवाहिक जीवन में किसी भी तरह की परेशानी आ रही हो तो आषाढ़ विनायक चतुर्थी के दिन गणेश जी के किसी मंदिर में जाकर हरे रंग के वस्त्र चढ़ाएं।
जानें आषाढ़ विनायक चतुर्थी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी 21 जून 2023 को दोपहर 03 बजकर 09 मिनट पर शुरु होगी और अगले दिन 22 जून 2023 को शाम 05 बजकर 27 मिनट पर इसका समापन होगा। इस दिन गणपति की पूजा दोपहर में की जाती है। विनायक चतुर्थी पर चंद्र दर्शन वर्जित है।
– गणेश पूजा का समय- सुबह 10.59 – दोपहर 13.47
– चंद्रोदय समय- सुबह 08.46 (विनायक चतुर्थी का चंद्रमा सुबह उदित होता है)
जानें आषाढ़ विनायक व्रत की पौराणिक कथा
हिन्दू धर्म में विनायक व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार माता पार्वती के मन में एक बार विचार आया कि उनका कोई पुत्र नहीं है। इस तरह एक दिन स्नान के समय अपने उबटन से उन्होंने एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जीव भर दिया। उसके बाद वह एक कुंड में स्नान करने के लिए चली गयीं। उन्होंने जाने से पहले अपने पुत्र को आदेश दे दिया कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी व्यक्ति को अंदर प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। थोड़ी देर बाद जब भगवान शिव वहां पहुंचे तो बालक ने उन्हें रोक दिया। भगवान शिव बालक को समझाने का प्रयास करने लगे लेकिन वह नहीं माना। क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर दिया। उसके बाद माता पार्वती के कहने पर उन्होंने उस बालक को पुनः जीवित किया।
आषाढ़ विनायक चतुर्थी पर न देखें चंद्रमा
आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत के दिन चंद्रोदय सुबह 08 बजकर 46 मिनट पर होगा। इस दिन चंद्रमा का दर्शन नहीं करते हैं। शास्त्रों के अनुसार विनायक चतुर्थी पर चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है।
भद्रा में है आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत
विनायक चतुर्थी व्रत वाले दिन भद्रा सूर्योदय के साथ ही लग रही है। उस दिन भद्रा का साया सुबह 05 बजकर 24 मिनट से शाम 05 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। 12 घंटे तक भद्रा रहेगी। इस भद्रा का वास पृथ्वी पर है।
आषाढ़ विनायक चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा
आषाढ़ विनायक चतुर्थी का दिन बहुत खास होता है। इसलिए इस दिन सुबह उठ कर स्नान करें। स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप जलाएं और भगवान गणेश को स्नान कराएं। इसके बाद भगवान गणेश को साफ वस्त्र पहनाएं। भगवान गणेश को सिंदूर का तिलक भी लगाएं। गणेश भगवान को दुर्वा प्रिय होती है इसलिए दुर्वा अर्पित करनी चाहिए। गणेश जी को लड्डू, मोदक का भोग भी लगाएं इसके बाद गणेश जी की आरती करें।
आषाढ़ विनायक चतुर्थी व्रत के लाभ
पंडितों के अनुसार इस दिन भगवान गणेश को प्रसन्न करके भक्त सुखी और समृद्ध जीवन जीते हैं, जो लोग बुरे दौर से गुजर रहे हैं या जीवन में असफलताओं का सामना कर रहे हैं, उन्हें इस व्रत का पालन करना चाहिए और भगवान गणेश को मोदक, लड्डू, पीले वस्त्र और मिठाई का भोग लगाना चाहिए। भगवान गणेश विघ्नहर्ता माने गए हैं, इनके भक्तों को कभी कष्ट नहीं झेलने पड़ते। साथ ही बुध और राहु-केतु की पीड़ा से मुक्ति मिलती है।
– प्रज्ञा पाण्डेय