स्कंद षष्ठी व्रत से संतान को प्राप्त होती है सुख-शांति
आज स्कंद षष्ठी है, स्कंद षष्ठी भगवान कार्तिकेय को समर्पित महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, तो आइए हम आपको स्कंद षष्ठी के महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जाने स्कंद षष्ठी के बारे में
स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। भगवान कार्तिकेय का एक नाम स्कंद कुमार भी है। तमिल हिंदुओं के बीच लोकप्रिय हिंदू देवता भगवान स्कंद कुमार हैं। वह भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र हैं और उन्हें भगवान गणेश का छोटा भाई माना जाता है। लेकिन उत्तरी भारत में, स्कंद को भगवान गणेश के बड़े भाई के रूप में पूजा जाता है। भगवान स्कंद के अन्य नाम मुरुगन, कार्तिकेयन और सुब्रमण्य हैं। स्कंद षष्ठी को कांडा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। पंचमी तिथि या षष्ठी तिथि सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच शुरू होती है और बाद में स्कंद षष्ठी व्रत के लिए इस दिन पंचमी और षष्ठी दोनों को संयुग्मित किया जाता है। इसका उल्लेख धर्मसिंधु और निर्णय सिंधु में मिलता है ।
स्कंद षष्ठी का शुभ मुहूर्त
15 अक्टूबर शनिवार कार्तिक कृष्ण षष्ठी सूर्योदय से पहले से 5.59 बजे तक उपरांत षष्ठी (अहोरात्र) तक शुभ मुहूर्त है।
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स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व
भगवान मुरुगन ने सोरपद्मन और उसके भाइयों तारकासुर और सिंहमुख को षष्ठी के दिन मार दिया था। स्कन्द षष्ठी का यह दिन जीत का प्रतीक है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान मुरुगन ने वेल या लांस नामक अपने हथियार का उपयोग करके सोरपद्मन का सिर काट दिया था। कटे हुए सिर से दो पक्षी निकले- एक मोर जो कार्तिकेय का वाहन बन गया और एक मुर्गा जो उनके झंडे पर प्रतीक बन गया। स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। स्कंद षष्ठी व्रत की कथा के अनुसार, च्यवन ऋषि के आंखों की रोशनी चली गई थी, तो उन्होंने स्कंद कुमार की पूजा की थी। व्रत के पुण्य प्रभाव से उनके आंखों की रोशनी वापस आ गई।
स्कंद षष्ठी के दिन ऐसे करें पूजा
स्कंद षष्ठी की पूजा शुरू करने से पहले भगवान कार्तिकेय के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को साफ चौकी पर स्थापित करें। उस पर घी, दही, जल और पुष्प से अर्घ्य प्रदान कर कलावा, अक्षत, हल्दी, चंदन, इत्र का अर्पण करें. पूजा के दौरान कार्तिकेय मंत्र- देव सेनापते स्कंद कार्तिकेय भवोद्भव। कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥ का जाप करें। शाम के समय पूजा के उपरांत भजन और कीर्तन करें। ब्रह्मपुराण में उल्लेख है कि स्कन्द की उत्पत्ति अमावस्या को अग्नि से हुई थी। वह को प्रत्यक्ष हुए थे। देवों के द्वारा सेनानायक बनाए गए थे और तारकासुर का वध किया था। कार्तिकेय की पूजा, दीपों, वस्त्रों, अलंकारों से की जाती है. साथ ही, स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। कार्तिकेय की स्थापना कर अखंड दीपक जलाए जाते हैं। विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय की गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है।
स्कंद षष्ठी से जुड़ी पौराणिक कथा
राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव की पत्नी सती ने अपनी जान दे दी थी। वह यज्ञ में कूदकर भस्म हो गई थीं। इस दुख से शिव जी तपस्या में लीन हो गए लेकिन उनके लीन होने से सृष्टि शक्तिहीन होने लगी। इस परिस्थिति का फायदा उठाते हुए तारकासुर ने देव लोक में आतंक मचा दिया और देवताओं को पराजित कर चारों तरफ भय का वातावरण बना दिया। तब सभी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और उनसे हल पूछा। ब्रह्माजी ने कहा कि शिव पुत्र के द्वारा ही तारकासुर का अंत होगा।
सभी कष्टों से मिलती है मुक्ति
शास्त्रों के अनुसार स्कंद षष्ठी का व्रत करने वाले को लोभ, मोह, क्रोध और अहंकार से मुक्ति मिल जाती है। साथ ही धन, यश और वैभव में वृद्धि होती है। व्यक्ति सभी शारीरिक कष्टों और रोगों से छुटकारा पाता है। पंडितों का मानना है कि स्कंद षष्ठी का व्रत रखने से निसंतान को संतान की प्राप्ति होती है। यह व्रत संतान सुख शांति के लिए रखा जाता है। इस व्रत को रखने से बच्चों को सुख व लंबी आयु की प्राप्ति होती है।
– प्रज्ञा पाण्डेय