साइकिल से चांद तक का सफर, डॉ. साराभाई की बदौलत हुई थी ISRO की स्थापना, एकबार में पूरा किया था मिशन मंगल
150 सालों की गुलामी के बाद भारत आजाद हुआ था और फिर गरीबी, बीमारी, अशिक्षा इत्यादि समस्याओं से जूझ रहा था। देखते ही देखते आजादी के 10 साल बीत गए और भारत के सबसे काबिल मित्र रूस (तब का सोवियत संघ) ने 4 अक्टूबर, 1957 को अपना पहला उपग्रह स्पुतनिक-1 अंतरिक्ष में भेजा। यही से भारतीय वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम और हम भी कर सकते हैं का जज्बा जागा और विक्रम साराभाई ने भारतीय प्रबंधन को समझाया कि विश्व के सारा कंधे से कंधा मिलाकर चलना है तो अंतरिक्ष में अपनी पहचान बनानी पड़ेगी।
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डॉ. विक्रम साराभाई और डॉ. रामनाथन के प्रयासों के बाद साल 1962 में भारत सरकार ने भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (इन्कोस्पार) की स्थापना और प्रण लिया कि भारत भी अंतरिक्ष में अपनी पहचान बनाएगा। उस वक्त इन्कोस्पार के पास सिर्फ और सिर्फ हौसला और महज सपने थे। ऐसे में अगर विक्रम साराभाई के पैर डगमगा जाते तो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की कल्पना करना भी मुश्किल होता।
भारत आजादी के 75 साल में अमृत महोत्सव मना रहा है और हम इसरो की वो कहानी आप तक पहुंचा रहे हैं, जिसने न सिर्फ भारत की शान में चार चांद लगाए बल्कि कोई भी ऐसा काम नहीं किया जिससे मानवता को नुकसान पहुंचा हो। यह इसरो की सबसे मजबूत कहानी है…
थुंबा में बनाया गया पहला रॉकेट स्टेशन
केरल के दक्षिणी छोर पर समुद्र के किनारे बसे एक कस्बे थुंबा में पहला रॉकेट स्टेशन बनाया गया था। जिसे तुंबा के नाम से भी जाना जाता है। 21 नवंबर 1963 को भारतीय वैज्ञानिकों ने पहला साउंडिंग राकेट लॉन्च किया। साउंडिंग राकेट वायुमंडल में पहुंचकर वहां के डेटा को एकत्रित करते हैं और फिर पैराशूट के जरिए वापस आते हैं। शुरुआत में वैज्ञानिकों ने अपना पूरा ध्यान साउंडिंग राकेट को बनाने में और इसे लॉन्च करने में लगाया था। उस वक्त किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि भारत अंतरिक्ष तक पहुंचेगा। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि उस वक्त वैज्ञानिकों ने इस राकेट को साइकिल में लादकर लाया था और लॉन्चिग पैड न होने की वजह से नारियल के पेड़ों पर बांधकर इसे लॉन्च किया था।
इसी प्रकार वैज्ञानिकों के हौसले और अथक परिश्रम को देखते हुए 15 अगस्त, 1969 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना की गई और फिर 19 अप्रैल, 1975 को देश ने अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट रूस की मदद से लॉन्च किया। जिसके बाद कभी भी वैज्ञानिकों ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उस वक्त इसरो के खुद को लॉन्च व्हीकल नहीं बना पाई थी लेकिन अथक प्रयासों से भारत ने अगस्त 1979 को अपना लॉन्च व्हीकल भी सभी के सामने लाया लेकिन उसका परिक्षण फेल हो गया था।
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असफलताओं की कहानियां ही एक दिन बड़ी सफलता दिलाती हैं और यह इसरो के वैज्ञानिकों ने साबित भी किया। 18 जुलाई, 1980 को इसरो ने एसएलवी-3 जो खुद बनाया था, उसकी मदद से रोहिणी सैटेलाइट का सफल प्रक्षेपण किया था। इसी के साथ ही भारत उन छह देशों में शामिल हो गया जिन्होंने खुद का सैटेलाइट बनाने और उन्हें लॉन्च करने का अद्म्य साहस रखते हैं। इसरो के मजबूत इरादों के चलते ही आज देशभर में इसके 13 सेंटर हैं। इसरो ने अब तक 110 अंतरिक्ष मिशन, 78 प्रमोचन मिशन, 10 विद्यार्थी उपग्रह, 2 पुन:प्रवेश मिशन को अंजाम दिया है। इसके अतिरिक्त इसरो ने 33 देशों के 328 विदेशी उपग्रह भी छोड़े हैं।
इसरो ने साल 1981 में एप्पल नामक भूवैज्ञानिक संचार उपग्रह का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। नवंबर में भास्कर -02 का प्रक्षेपण हुआ और साल 1982 में इन्सैट-01 का और सितंबर अक्रियकरण का प्रक्षेपण किया। इसके बाद 1983 में एसएलवी-3 का दूसरा सफल लॉन्च हुआ था।
भारत ने साल 1984 में रूस के साथ मिलकर पहला मैन मिशन पूरा किया। इस दौरान भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर राकेश शर्मा को अंतरिक्ष में भेजा गया था। इसके बाद अंतरिक्ष मिशन को गति देने के लिए इसरो ने 22 अक्टबूर 2008 को चंद्रयान-एक का प्रक्षेपण किया था और इसी ने चांद में पानी होने की बात कही थी और नासा ने भी इसकी पुष्टि की थी।
मिशन मंगल
मिशन मंगल के बारे में शायद ही कोई भूल पाएगा। 24 सिंतबर 2014 को इसरो ने अपने पहले ही प्रयास में मिशन मंगल को पूरा किया था। इतना ही नहीं यह अब तक का सबसे सस्ता मंगल मिशन था जो सिर्फ 450 करोड़ रुपए में पूरा हुआ था।
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14 फरवरी, 2017 को इसरो ने दुनिया को चौंकाते हुए श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले लॉन्च पैड से अंतरिक्ष में 104 सैटलाइट्स छोड़े थे। साल 2020 इसरो के लिए काफ़ी व्यस्तताओं से भरा होगा। इसरो चंद्रयान-3 अगले साल की शुरुआत में लांच करेगा। इसके अलावा 2022 में भेजे जाने वाले गगनयान के यात्रियों यानी एस्ट्रोनॉट की मेडिकल फिटनेस जांच पूरी हो चुकी है।