युवा शक्ति का सकारात्मक उपयोग करेंगे तो विश्व गुरु ही नहीं, अपितु विश्व का निर्माण करने वाले विश्वकर्मा के रूप में जाने जाएंगे : स्वामी विवेकानंद

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हमारे भारत के पावन भूमि पर अनेक संत महात्मा और ऋषि मुनियों ने जन्म लिया, उनके द्वारा दिए गए सत्य, प्रेम, त्याग और मानवता के संदेशों से सम्पूर्ण विश्व ने प्रेरणा ली है, ऐसे ही हम भारतवासियों के पथप्रदर्शक, युगपुरुष, वेदांत दर्शन के पुरोधा, मातृभूमि के उपासक, विरले कर्मयोगी, दरिद्रनारायण मानव सेवक, तूफानी हिन्दू साधु, करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्रोत व प्रेरणापुंज स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कलकत्ता (आधुनिक नाम कोलकाता) में पिता विश्वनाथ दत्त और माता भुवनेश्वरी देवी के यँहा हुआ।

 

 

दरअसल, यह वो समय था जब यूरोपीय देशों में भारतीयों व हिन्दू धर्म के लोगों को हीनभावना से देखा जा रहा था व समस्त समाज उस समय दिशाहीन हो चुका था। भारतीयों पर अंग्रेजीयत हावी हो रही थी तभी स्वामी विवेकानंद ने जन्म लेकर न केवल हिन्दू धर्म को अपना गौरव लौटाया अपितु विश्व फलक पर भारतीय संस्कृति व सभ्यता का परचम भी लहराया। ‘नरेन्द्र’ से ‘स्वामी विवेकानंद’ बनने का सफर उनके हृदय में उठते  सृष्टि व ईश्वर को लेकर सवाल व अपार जिज्ञासाओं का ही साझा परिणाम था।

 

 

बचपन में नरेन्द्र का हर किसी से यह सवाल पूछना- ‘क्या आपने भगवान को देखा है?, ‘क्या आप मुझे भगवान से साक्षात्कार करवा सकते हैं?’ लोग बालक के ऐसे सवालों को सुनकर न केवल मौन हो जाते, अपितु कभी-कभार जोरों से हंसने भी लगते थे। पर नरेन्द्र  का सवाल हंसी-बौछारों के बाद भी वही रहता- ‘क्या आपने भगवान को देखा है?’

 

समय की करवट के साथ नरेन्द्र, स्वामी रामकृष्ण परमहंस से जा मिले और वही सवाल  दोहराते हैं- ‘क्या आपने भगवान को देखा है? क्या आप मुझे भगवान के दर्शन करवा सकते हैं?’ तब उन्हें उत्तर मिलता है- ‘हां! जरूर क्यूं नहीं।’ रामकृष्ण परमहंस ने नरेन्द्र को मां काली के दर्शन करवाए और नरेन्द्र ने मां काली से 3 वरदान मांगे- ज्ञान, भक्ति और  वैराग्य।

 

 

यहां से ही नरेन्द्र के मन में अंकुरित होता धर्म और समाज परिवर्तन का बीज वटवृक्ष में  तब्दील होने लगता है। स्वामी विवेकानंद देश के कोने-कोने में गुरु स्वामी रामकृष्ण  परमहंस के आशीर्वाद से धर्म, वेदांत और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने के लिए निकल  पड़ते हैं। इसी श्रृंखला में स्वामी विवेकानंद का राजस्थान भी आना होता है। यहीं खेतड़ी के महाराजा अजीतसिंह ने उन्हें ‘विवेकानंद’ नाम दिया और सिर पर स्वामिभान की केसरिया  पगड़ी पहनाकर अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म परिषद में हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति का शंखनाद करने के लिए भेजा।

 

स्वामी विवेकानंद को विश्व धर्म परिषद में पर्याप्त समय नहीं दिया गया। किसी प्रोफेसर की पहचान से अल्प समय के लिए स्वामी विवेकानंद को शून्य पर बोलने के लिए कहा  गया। अपने भाषण के प्रारंभ में जब स्वामी विवेकानंद ने ‘अमेरिकी भाइयों और बहनों’ कहा तो सभा के लोगों के बीच करबद्ध ध्वनि से पूरा सदन गूंज उठा। उनका भाषण सुनकर विद्वान चकित हो गए। यहां तक कि वहां के मीडिया ने उन्हें ‘साइक्लॉनिक हिन्दू’ का नाम  दिया।

 

 

यह स्वामीजी के वाक् शैली का ही प्रभाव था जिसके कारण एक विदेशी महिला ने उनसे कहा- ‘मैं आपसे शादी करना चाहती हूं।’

 

विवेकानंद ने पूछा- ‘क्यों देवी? पर मैं तो ब्रह्मचारी हूं।’

 

महिला ने जवाब दिया- ‘क्योंकि मुझे आपके जैसा ही एक पुत्र चाहिए, जो पूरी दुनिया में मेरा नाम रोशन करे और वो केवल आपसे शादी करके ही मिल सकता है मुझे।’

 

 

विवेकानंद कहते हैं- ‘इसका और एक उपाय है।’

 

विदेशी महिला पूछती है- ‘क्या?’

 

विवेकानंद ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘आप मुझे ही अपना पुत्र मान लीजिए और आप मेरी मां बन जाइए, ऐसे में आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा और मुझे अपना ब्रह्मचर्य भी नहीं तोड़ना पड़ेगा।’

 

 

महिला हतप्रभ होकर विवेकानंद को ताकने लगी। जब विवेकानंद भारत लौटे तो मिट्टी में लौटने लगे। लोगों ने उन्हें देखकर मान लिया कि स्वामीजी तो पागल हो गए हैं, पर इसके पीछे भी उनकी महान सोच थी व माटी के प्रति गहरी कृतज्ञता का भाव छिपा था।

 

 

4 जुलाई 1902 को स्वामी विवेकानंद पंचतत्व में विलीन हो गए, पर अपने पीछे वे असंख्यक युवाओं के सीने में आग जला गए, जो इंकलाब एवं कर्मण्यता को निरंतर प्रोत्साहित करती रहेगी। युवाओं को गीता के श्लोक के बदले मैदान में जाकर फुटबॉल  खेलने की नसीहत देने वाले स्वामी विवेकानंद सर्वकालिक प्रासंगिक रहेंगे।

 

 

स्वामी विवेकानंद की याद में भारत में प्रत्येक वर्ष 12 जनवरी को ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ मनाया जाता है। लेकिन आज भारत की युवा ऊर्जा अंगड़ाई ले रही है और भारत विश्व में सर्वाधिक युवा जनसंख्या वाला देश माना जा रहा है। इसी युवा शक्ति में भारत की ऊर्जा  अंतरनिहित है। इसीलिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने ‘इंडिया 2020’ नाम की अपनी कृति में भारत के एक महान राष्ट्र बनने में युवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रेखांकित  की है।

 

 

पर महत्व इस बात का है कि कोई भी राष्ट्र अपनी युवा पूंजी का भविष्य के लिए निवेश किस रूप में करता है? हमारा राष्ट्रीय नेतृत्व देश के युवा बेरोजगारों की भीड़ को एक बोझ मानकर उसे भारत की कमजोरी के रूप में निरूपित करता है या उसे एक कुशल मानव संसाधन के रूप में विकसित करके एक स्वाभिमानी, सुखी, समृद्ध और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में भागीदार बनाता है। यह हमारे राजनीतिक नेतृत्व की राष्ट्रीय व सामाजिक  सरोकारों की समझ पर निर्भर करता है। साथ ही, युवा पीढ़ी अपनी ऊर्जा के सपनों को किस तरह सकारात्मक रूप में ढालती है, यह भी बेहद महत्वपूर्ण है।

 

 

अंतत: हमें इस युवा शक्ति की सकारात्मक ऊर्जा का संतुलित उपयोग करना होगा। कहते हैं कि युवा वायु के समान होता है। जब वायु पुरवाई के रूप में धीरे-धीरे चलती है तो सबको अच्छी लगती है। सबको बर्बाद कर देने वाली आंधी किसी को भी अच्छी नहीं लगती है। हमें इस पुरवाई का उपयोग विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में करना होगा। यदि हम इस युवा शक्ति का सकारात्मक उपयोग करेंगे तो विश्व गुरु ही नहीं, अपितु विश्व का निर्माण करने वाले विश्वकर्मा के रूप में भी जाने जाएंगे।

 

 

अभिषेक सिंह
जिला प्रभारी (रामगढ़) भारतीय जनता युवा मोर्चा, झारखंड
राष्ट्रीय सचिव, भारत तिब्बत सहयोग मंच (युवा)

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