अश्विनी चौबे: नीतीश के खिलाफ मुखर रहने वाले वह नेता जिन्हें पीएम बनने के बाद मोदी ने दिया इनाम
अश्विनी कुमार चौबे राजनीति के जाने-माने चेहरे हैं। फिलहाल मोदी सरकार में वह राज्य मंत्री हैं और कई विभागों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। राजनीति से उनका लंबा रिश्ता रहा है। अपने संघर्ष और प्रतिभा के दम पर राजनीति में जगह बनाने में कामयाब हुए। बिहार में 1967-68 में सरकार के खिलाफ हुए छात्र आंदोलन में अश्विनी चौबे काफी सक्रिय रहे थे। अश्विनी चौबे का जन्म 2 जनवरी 1953 को भागलपुर बिहार में हुआ था। उन्होंने पटना यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की है। बिहार की राजनीति में अश्विनी चौबे एक दिग्गज नेता हैं। अश्विनी शुरू से ही जन संघ से जुड़े रहे हैं और फिर वह भाजपा में आ गए।
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अश्विनी चौबे की राजनीति की बात की जाए तो 1974 से 87 तक वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। 1977 में यह जेपी आंदोलन से जुड़े और आपातकाल के दौरान गिरफ्तार भी हुए। आपातकाल में यह 23 महीनों तक जेल में रहे थे। 1995 में भागलपुर से चुनाव जीतकर विधायक बने। लगातार उन्होंने लगातार पांच बार भागलपुर का प्रतिनिधित्व किया। 2014 तक वह भागलपुर से ही विधायक रहे। 2005 में जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो अश्विनी चौबे को नगर विकास एवं लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण की जिम्मेदारी दी गई।
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2010 में एक बार फिर से नीतीश सरकार बनने के बाद उन्हें स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। बतौर स्वास्थ्य मंत्री बिहार में उन्होंने काफी काम किया। स्वास्थ्य मंत्री रहने के दौरान ही उन्होंने महादलित परिवारों के यहां 11000 शौचालय बनवाई। इसी दौरान उन्होंने एक नारा दिया था ‘घर-घर में हो शौचालय का निर्माण, तभी होगा लाडली बिटिया का कन्यादान’। यह स्लोगन खूब प्रचलित हुआ था जिसके बाद अश्विनी चौबे बिहार भर में जाने जाने लगे। अश्विनी चौबे भाजपा के मुख्य नेताओं में रहे हैं। नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार में मंत्री होने के बावजूद भी अपनी पार्टी का पक्ष वह मजबूती से रखते रहे। तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समर्थन में वह खुलकर बोलते रहे जो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कभी पसंद नहीं था। नीतीश और नरेंद्र मोदी के रिश्तो में तल्खी की कहानी तो हमने सुनी होगी। लेकिन अश्विनी चौबे लगातार नीतीश कुमार के उलट मोदी की तारीफ करते थे और उन्हें देश के प्रधानमंत्री बनाने की वकालत भी करते रहे।
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2013 में जब केदारनाथ धाम में त्रासदी आई थी तब अश्विनी चौबे वहीं फंसे हुए थे। इसके बाद उन्हें हेलीकॉप्टर से बचाया गया था। उन्होंने केदारनाथ त्रासदी नामक पुस्तक भी लिखी है। 2014 में जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए बिहार के बक्सर से भाजपा ने अश्विनी चौबे को टिकट दिया और वह जीतकर लोकसभा पहुंचे। नीतीश के खिलाफ मुखर रहने वाले अश्विनी चौबे को नरेंद्र मोदी ने इनाम देते हुए अपने मंत्रिपरिषद में जगह दी। अश्विनी चौबे 2017 से 2021 तक के स्वास्थ्य मंत्रालय में राज्य मंत्री रहे हैं। जबकि 2021 के बाद से वह पर्यावरण मंत्रालय में राज्य मंत्री हैं इसके अलावा उन्हें के पास उपभोक्ता मंत्रालय में भी राज्य मंत्री की जिम्मेदारी है। अश्विनी चौबे अपने बयानों के लिए भी जाने जाते हैं।