क्या होता है फेरन ? चिल्लई-कलां में भी नहीं होता ठंड का अहसास

जम्मू-कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के मशहूर लाल चौक के पास नागरिक समाज के सदस्य एकजुट हुए और फेरन दिवस मनाया। इस दौरान लोगों के हाथों में तख्तियां देखने को मिली। जिसमें उन्होंने लिखा था- Pheran is not an attire, it is our Pride. जिसका हिंदी में मतलब होता है- फेरन कोई पोशाक नहीं है बल्कि हमारी शान है। प्रभासाक्षी के संवाददाता ने लाल चौक के लोगों से बातचीत की और 40 दिनों तक रहने वाले चिल्लई-कलां के बारे में समझा। इस दौरान एक शख्स ने उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से अनुरोध किया कि वो चिल्लई-कलां में यानी की 40 दिनों तक कम से कम फेरन का इस्तेमाल करें। 
आपको बता दें कि चिल्लई-कलां शुरू हो गया है और अगले 40 दिनों तक बहुत से कश्मीरियों की जिंदगी 10-12 फीट लंबे-चौड़े कमरों में सिमट जाएगी। चिल्लई-कलां शुरू होने से पहले ही कश्मीरी लोग कांगडियों के लिए कोयला, सूखी सब्जियां, दालें व शुष्क फल स्टोर कर लेते हैं। इन 40 दिनों तक कश्मीरी लोग चिल्लई-कलां की खून जमा देने वाली ठंड का मुकाबला करते हैं। इस दौरान कश्मीरी लोगों के शरीर में एक पोशाक दिखती है। जिसे फेरन कहा जाता है।

इसे भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में बिजली कर्मचारियों का हड़ताल खत्म, क्या सुलझ पाएंगे मुद्दे?

विशेष रूप से फेरन कश्मीर की एक पारंपरिक पोशाक है, जिसे लोग सर्दियों के दौरान खुद को ठंड में गर्म रखने के लिए पहनते हैं। जम्मू और कश्मीर आर्थिक परिसंघ (जेकेईसी) के सदस्यों और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कश्मीर फेरन दिवस मनाकर चिल्लई-कलां के आगमन का जश्न मनाया।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक समूह शहर के केंद्र लाल चौक के बीच में इकट्ठा हुआ और सरकार से स्थानीय और गैर-स्थानीय कर्मचारियों को फेरन पहनने की अनुमति देने की अपील की। सामाजिक कार्यकर्ता इम्तियाज हुसैन ने बताया कि फेरन कश्मीर की पारंपरिक पोशाक है और इसे ठंड के मौसम में संरक्षित और इस्तेमाल किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक नेता मीर सैयद अली हमदानी (आरए) की ओर से फेरन कश्मीर के लोगों के लिए एक उपहार है। उन्होंने कहा कि यह हमें भीषण ठंड से बचाता है जबकि इसके नीचे कांगड़ी हमें गर्म रखता है। हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि कर्मचारियों को ड्यूटी के घंटों के दौरान इसका इस्तेमाल करने की अनुमति दी जाए। 
वहीं एक अन्य सामाजिक कार्यकर्ता डॉ मेहर ने बताया कि इतना आधुनिकीकरण होने पर भी उन्हें अपनी संस्कृति और परंपरा को नहीं भूलना चाहिए। फेरन हमारी पारंपरिक पोशाक है और हमें इस पर गर्व करना चाहिए। हमें विज्ञान और प्रौद्योगिकी के इस युग में अपनी संस्कृति और परंपरा को बनाए रखना चाहिए।

इसे भी पढ़ें: कश्मीर में 40 दिन का चिल्लई कलां का दौर शुरू, इस सप्ताह बर्फबारी का पूर्वानुमान

कश्मीर में इन दिन ठिठुरने वाली ठंड पड़ रही है। पारा शून्य से नीचे जा चुका है। कश्मीर में साल के तकरीब 7 महीने ठंड रहती है। लेकिन सर्दियों का मौसम शुरू होते ही पारा नीचे गिरने लगता है और तो और चिल्लई कलां की 40 दिनों की अवधि भी शुरू हो चुकी है। इस दौरान भीषण ठंड पड़ती है। इस अवधि के दौरान बर्फबारी सबसे ज्यादा होती है और अधिकतर क्षेत्रों में विशेष रूप से ऊंचाई वाले इलाकों में भारी बर्फबारी होती है। चिल्लई कलां के बाद कश्मीर में 20 दिनों का चिल्लई खुर्द और 10 दिनों का चिल्लई बच्चा मौसम शुरू होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed