उषा अर्ध्य देकर व्रतधारी महिलाओं ने किया छठ पूजा का समापन

वाराणसी। उगते सूर्य को अर्ध्य देने के साथ ही बीते ढाई दिनों से चल रहा छठ का महापर्व का व्रत आज पूरा हो गया। इस मौके पर वाराणसी के गंगा घाट पूरी तरह से छठ के पर्व के रंग में रंगा दिखा। छ्ठ को महापर्व इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि सूर्य ही एकमात्र ऐसे प्रत्यक्ष देवता हैं। जो दिखाई देते है। इसके साथ ही छठ पूजा का वर्णन पुराणों में भी मिलता है। यह ऐसा पर्व है जिसमें उदयमान सूर्य के साथ-साथ अस्ताचलगामी सूर्य को भी अर्घ्य देकर उनकी पूजा अर्चना जाता है। छठ के अंतिम दिन यानी आज के दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देने के लिए आधी रात से ही लोगों की भीड़ गंगा घाट पर उमड़नी शुरू हो गयी है। कोई दंडवत तो कोई नंगे पैर भगवान भास्कर को अर्घ्य अर्पित करने पहुंचा। अस्सी से राजघाट, वरुणा के किनारे और कुंडों पर आस्थावानों का रेला लगा रहा।
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गंगा घाट पर कुछ श्रद्धालु ऐसे भी थे जिन्होंने सूर्य देव के इंतज़ार में सारी रात गंगा घाट पर ही गुजारी और सुबह उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर अपनी पूजा को पूरा किया। अभी रात की काली चादर हटी नहीं थी मगर पूजा की वेदियों पर जल रहे दीयों ने अँधेरे को मिटाना शुरू कर दिया था। गंगा घाटों पर दूर दूर तक छठ पूजा का ही नज़ारा देखने को मिल रहा था।अँधेरा कम होने के साथ ही लोगों की नज़रें भी सूर्य देव को आसमान में निहारती रही। व्रतधारी महिलाएं अपने हाथों में फल, फूल से सजे सूप लेकर गंगा के पानी में उतर गयी और संभावित समय से करीब 20 मिनट की देरी से जब 6 बज कर 40 मिनट पर सूर्य देव ने अपने दर्शन दिए तो लाखों की भीड़ ने उगते सूर्य को अर्ध्य देकर अपने छठ व्रत को पूरा किया।
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छठ के इस पर्व को लेकर लोगों में अटूट आस्था देखने को मिलती है। लोगो का मान्यता है कि सूर्य देवता और छठ मईया की उपासना से उनकी हर मुराद पूरी हुई है। घाटों पर तमाम ऐसे श्रद्धालु थे जो वर्षों से व्रत को करते चले आ रहे हैं, तो वही कई ऐसे भी थे जिनके लिए यह पहला मौका था। पूरे चकाचौंध और भक्तिभाव से की जाने वाली इस पूजा को न सिर्फ बिहार में बल्कि पुरे देश के लोग पूरी निष्ठां और श्रद्धा के साथ मनाते हैं। माँ गंगा के किनारे तो इस पर्व की अलग ही छटा देखने को मिलती है। बनारस के घाटों पर दूर-दूर से श्रद्धालु छठ पूजन करने और छठ पूजन देखने के लिए आते है।